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________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / 239 अनुप्रेक्षा ध्यानादवतीर्णस्य, सा च द्वादशधाऽनित्यादिभेदात् 'पढमं अणिच्चभावं' इत्यादि / रोहिणी' -प्रज्ञप्ति' -वज्रशृङ्खला -वज्राङ्कशी -अप्रतिचक्रा-पुरुषदत्ता -काली महाकाली -गौरी गान्धारी' -ज्वालामालिनी"-मानवी"-चैरोट्या -ऽच्छुप्ता -मानसी"-महामा सीति विद्यादेवताः // - - - 10 अनुप्रेक्षानुं स्वरूप ध्यान' दशामांथी उतर्या पछी अनुप्रेक्षा होय छे / ते अनित्यभावनादि भेदथी 12 प्रकारे छे। 5 तेनुं (बार भावनानुं) स्वरूप 'मरणसमाधिपयन्ना'मां नीचे प्रमाणे छ : पढम अणिच्चभावं असरणयं एगयञ्च अन्नत्तं / 'संसारमसुभयापिय विविहं लोगं सहावं च // 73 // कम्मस्स आसवं संवरं च निजरणमुत्तमेयगुणे। जिणसासणंमिबोहिं च दुल्लहं चिंतए मइअं // 74 // अर्थ : (1) अनित्य भावना, (2) अशरण भावना, (3) एकत्व भावना, (4) अन्यत्व भावना, (5) संसार भावना, (6) अशुचि भावना, (अशुभ भावना) (7) विविध लोक स्वभाव भावना, (8) कर्म-आश्रव भावना, (9) कर्म-संवर भावना, (10) कर्म-निर्जरा भावना, (11) उत्तम गुणोनी भावना, (12) श्री जिनशासन संबंधी बोधि (सम्यक्तव) मळवी ते दुर्लभ छे-ते भावना / ए प्रमाणे बार भावनाओ छ। 'नवतत्त्व' वगेरेमां बार भावनाओनां नाम नीचे मुजब आप्यां छे 15 (1) अनित्य भावना, (2) अशरण भावना, (3) संसार भावना, (4) एकत्व भावना, (5) अन्यत्व भावना, (6) अशुचित्व भावना, (7) आश्रव भावना, (8) संवर भावना, (9) निर्जरा भावना, (10) लोकस्वभाव भावना, (11) बोधिदुर्लभभावना, (12) धर्मना साधक (साधी आपनारा) अरिहंत वगेरे दुर्लभ छ (धर्मस्वाख्यात भावना) ए भावना। 16 विद्यादेवीओ 20 (1) रोहिणी, (2) प्रज्ञप्ति, (3) वज्रशृंखला, (4) वज्रांकुशी, (5) अप्रतिचक्रा, (6) पुरुषदत्ता, (7) काली, (8) महाकाली, (9) गौरी, (10) गांधारी, (11) ज्वालामालिनी, (12) मानवी, (13) वैरोट्या, (14) अच्छुप्ता, (15) मानसी, (16) महामानसी–ए सोळ विद्यादेवीओ छ / 1. तुलना-'झाणोवरमेऽवि मुणी णिच्चमणिच्चाइभावणापरमो / होइ सुभावियचित्तो धम्मज्झाणेण जो पुत्विं // 65 // 25 -ध्यानशतक
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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