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________________ 236 ध्यानविचारः। [प्राकृत तत्र चिन्ताभावना-ऽनुप्रेक्षाव्यतिरिक्तं चलं चित्तम् / सा च सप्तधा प्रथमा तत्त्वचिन्ता-परमतत्त्वचिन्तारूपा। तत्राद्या जीवा-ऽजीवादीनां 9 / द्वितीया ध्यानादीनामेव 24 भेदानाम् // 1 // द्वितीया मिथ्यात्व-सास्वादन-मिश्रदृष्टिगृहस्थरूपा। अत्रैतेषां स्वरूपं विपर्यस्तादिरूपं चिन्त्यम् // 2 // तृतीया चतुर्विधानाम्-क्रिया(१८०)-अक्रिया(८४) अज्ञान(६७)-विनय (३२)-वादिनां-(३६३) पाखण्डिनां स्वरूपचिन्ता // 3 // पार्श्वस्थादिस्वयूथ्यस्वरूपचिन्ता // 4 // नारक-तिर्यड्-नरामराणामविरतसम्यग्दृष्टीनां स्वरूपचिन्ता // 5 // मनुष्याणां देशविरतसम्यग्दृष्टीनां स्वरूपचिन्ता // 6 // 10 चिन्तार्नु स्वरूप * भावना अने अनुप्रेक्षाथी भिन्न जे चलचित्त ते 'चिन्ता' कहेवाय छे / ते चिन्ता सात . प्रकारे छे : (1) तेमां प्रथम प्रकारना वळी बे पेटा प्रकारो छे : 'तत्त्वचिन्ता' अने ‘परमतत्त्वचिन्ता'। जीवाजीव आदि तत्त्वोनु चिन्तन करवू ते 'तत्त्वचिन्ता'। ध्यान आदि 24 भेदानु चिन्तन करवू ते 15 'परमतत्त्वचिन्ता। (2) मिथ्यात्व, सास्वादन, तथा मिश्रदृष्टि गुणठाणामां रहेला गृहस्थोना विपर्यस्तोदि स्वरूपy चिन्तन करवू ते चिन्तानो बीजो प्रकार छ / (3) 180 क्रियावादी, 84 अक्रियावादी, 67 अज्ञानवादी तथा 32 विनयवादी एम 363 पाखंडीओना स्वरूपy चिंतन करवू ते चिन्तानो त्रीजो प्रकार छ / 20 (4) पार्श्वस्थ आदि पोताना जूथना साधुओना स्वरूप- चिंतन करवं ते चिन्तानो चोथो प्रकार छ (5) नारकी, तिर्यंच, मनुष्य अने देवताओमां जे अविरति सम्यग्दृष्टिओ होय. तेओना स्वरूपनुं चिंतन करवू ते चिन्तानो पांचमो प्रकार छ / (6) मनुष्योमा जे देशविरत सम्यग्दृष्टिओ होय तेओना स्वरूप, चिंतन करवू ते चिन्तानो 25 छट्ठो प्रकार छ / * चोवीस प्रकारना ध्यानमार्गनुं निरूपण तो समाप्त थयुं / परंतु ते निरूपण करती वखते जे केटलीक हकीकतो कहेली तेनुं स्पष्टीकरण ग्रंथकार हवे पछी करे छे।। 1. प्रथम ध्यानना लक्षणमा 'चिन्ता अने भावनाथी उत्पन्न थयेलो जे अध्यवसाय ते ध्यान' एम जणाव्युं छे। तेमा चिन्ता एटले शुं? एन स्पष्टीकरण ग्रंथकारे अहीं कर्यु छे। 30 2. मिथ्यात्व गुणठाणामां तत्त्वनो विपर्यास होय छे / सास्वादन गुणठाणामां सम्यक्त्वनो कंईक स्वाद होय छ / मिश्रदृष्टिमां तत्त्व तथा अतत्त्व बन्ने प्रत्ये उदासीनता होय छे / आना विशेष स्वरूप माटे जुओ-कर्मग्रंथादि / 3. क्रियावादी वगेरेनुं वर्णन स्थानांगादि सूत्रोमा छ / 4. बे प्रकारना पासत्था (पार्श्वस्थ ), बे प्रकारना अवसन्ना, त्रण प्रकारना कुशीलो, बे प्रकारना संसक्तो अने अनेक प्रकारना 'यथाछंदो' छ / जुओ-श्री देवेन्द्रसूरिकृत गुरुवंदनभाष्य गाथा-'पासत्थो उस्सन्नो'॥
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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