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________________ 234 ध्यानविचारः। [प्राकृत पदं-द्रव्यतो लौकिकं राजादि 5, लोकोत्तरमाचार्यादि 5, भावतः पञ्चानां परमेष्ठिपदानां ध्यानम् // 21 // परमपदं–पञ्चानां परमेष्ठिपदानामात्मनि न्यासः आत्मनस्तदध्यारोपेण परमेष्टिरूपतया चिन्तनमित्यर्थः // 22 // सिद्धिः-लौकिकाणिमादिरष्टधा, लोकोत्तरा राग-द्वेषमाध्यस्थ्यरूपपरमानन्दलक्षणा; भावतो मुक्तिपदप्राप्तजीवानां—'से न दीहे न हस्से' इत्यादि (३१)—'अहवा कम्मे णव दरिसणम्मि' इत्यादि (३१)-मीलने (62) द्वाषष्टिगुणचिन्तनम् // 23 // परमसिद्धिः--मुक्तगुणानामात्मन्यध्यारोपणम् // 24 // इति संक्षेपार्थः / / 10 * 21. पद:-द्रव्यथी 'पद' लौकिक राजा आदि पांच पदवीओ (राजा, मंत्री, कोषाध्यक्ष. सेनापति, पुरोहित) छे। लोकोत्तर पद आचार्यादि (आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, गणावच्छेदक अने स्थविर) पांच पदवीओ छे। पांच परमेष्ठीपदोनुं ध्यान करवू ते भावथी 'पद' छे। . 22. परमपद :-पांच परमेष्ठीपदोनो आत्मामां न्यास अर्थात् आत्मामां तेनुं आरोपण करीने आत्माने पंचपरमेष्ठीरूपे चिंतववो ए 'परमपद' छ। 15 23. सिद्धिः-लौकिक 'सिद्धि' लघिमा, वशिता, ईशित्व, प्राकाम्य, महिमा, अणिमा, यत्र कामावसायित्व अने प्राप्ति एम आठ प्रकारनी छे। राग अने द्वेषमां माध्यस्थ्य भावरूप परमानंद ते लोकोत्तर सिद्धि छे / अने मुक्ति पामेला आत्माओना 62 गुणोनुं ध्यान ए भावथी सिद्धि छ। 24. परमसिद्धिः- सिद्धोना गुणोनो पोताना आत्मामां अध्यारोप करवो ते ‘परमसिद्धि' छ। (संक्षिप्त भावार्थ समाप्त) 20 * वीसमा परममात्रा ध्यानमा आवता चोवीस वलयोनुं निरूपण पूर्ण थई गयुं होवाथी हवे एकवीसमाथी मांडीने बाकी रहेला ध्यानोनुं स्वरूप अहींथी जणाववामां आवे छे / 1. शास्त्रोमां 'सिद्ध' भगवंतना 31 गुणो प्रसिद्ध छ। परंतु ते 31 नी गणत्री बे रीते थती होवाथी बन्ने गणत्रीना थईने अहीं 62 गुणो कह्या छे / ते नीचे मुजब छे : ___"...से न दीहे न हस्से न वढे न तंसे न चउरंसे न परिमंडले न किण्हे न नीले न लोहिए न हालिद्दे न सुकिल्ले 25 न सुरभिगंधे न दुरभिगंधे न तित्ते न कडुए न कसाए न अंबिले न महुरे न कक्खडे न मउए न गरुए न लहुए न उण्हे न निद्धे न लुक्खे न काऊ न रहे न संगे न इत्थी न पुरिसे न अन्नहा..." -आचारांगसूत्र सू. 171-2 / अर्थ : सिद्धो (1) दीर्घ नथी के ह्रस्व नथी, (2) गोळ नथी, (3) त्रिकोण नथी, (4) चतुष्कोण नथी, (5) परिमंडलाकारे नथी, (6) श्याम नथी, (7) नील नथी, (8) लाल नथी, (9) पीळा नथी, (10) श्वेत नथी, (11) सुगन्धी नथी, (12) दुर्गन्धी नथी, (13) तिक्त नथी, (14) कटु नथी, (15) तुरा नथी, (16) खाटा नथी, 30 (17) मधुर नथी, (18) कठिन नथी, (19) मृदु नथी, (20) भारे नथी, (21) हलका नथी, (22) शीत नथी, (23) उष्ण नथी, (24) स्निग्ध नथी, (25) रूक्ष नथी, (26) शरीरधारी नथी, (27) जन्म लेता नथी, (28) (अमूर्त होवाने लीधे) संगवाळा नथी, (29) स्त्री नथी, (30) पुरुष नथी, (31) नपुंसक नथी। आ रीते सिद्धोना निषेधात्मक 31 गुण उपर जणाव्या। हवे बीजी रीते 31 गुण नीचे मुजब छे-- "अहवा कम्मे णव दरिसणम्मि चत्तारि आउए पंच। ' आइम अंते सेसे दोदो खीणभिलावेण इगतीसं // " व्याख्या-'अथवा' इति व्याख्यान्तरप्रदर्शनार्थः, 'कर्मणि' कर्मविषया क्षीणाभिलापेनकत्रिंशद्गुणा भवन्ति, तत्र नव दर्शनावरणीये, नवभेदा इति-क्षीणचक्षुर्दर्शनावरणः 4, क्षीणनिद्रः 5, चत्वार आयुष्के-क्षीणनरकायुष्कः 4, 'पंच आइमे' त्ति आद्य ज्ञानावरणीयाख्ये कर्मणि पञ्चक्षीणाभिनिबोधिकज्ञानावरणः 5, 'अंते' त्ति अन्त्ये-अन्तराये कर्मणि
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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