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________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। 233 असंख्यातशाश्वतेतरस्थापनार्हच्चैत्यवलयम् // (17) ऋषभादिपरिवारभूतगणधरप्रभृतिसाधुसंख्यावलयम् // (18) महत्तरामुख्यसाध्वीसंख्यावलयम् // (19) श्रावकसंख्यावलयम् // (20) [श्राविकासंख्यावलयम् // (21)] भवनयोग 96 वलयम् // (22) करणयोग 96 वलयम् / / (23) करण 96 वलयम् // (24) (17) सत्तरमुं वलय असंख्यात शाश्वत अने अशाश्वत स्थापना अरिहंतोना अर्थात् जिनप्रतिमाओना चैत्योर्नु छ। 10 (18) अढारमुं वलय श्री ऋषभदेवादि तीर्थंकरोना परिवारभूत गणधर वगेरे साधुओनी संख्याछ / (जुओ परिशिष्ट नं. 2) (19) ओगणीसमुं वलय महत्तरा वगेरे साध्वीओनी संख्या- छे / (जुओ परिशिष्ट नं. 2) (20) वीसमा वलयमां श्रीवकोनी संख्या स्थापवामां आवे छे / (जुओ परिशिष्ट नं. 3) (21) एकवीसमा वलयमां श्राविकाओनी संख्या स्थापवामां आवे छे। (जुओ परिशिष्ट नं. 3) 15 (22) बावीसमा वलयमा 96 भवनयोगनी स्थापना करवामां आवे छे। (जुओ परिशिष्ट नं. 4) (23) त्रेवीसमा वलयमां 96 करणयोगनी स्थापना करवामां आवे छे। (जुओ परिशिष्ट नं. 4) (24) चोवीसमा वलयमां 96 करणनी स्थापना करवामां आवे छ। (जुओ परिशिष्ट नं. 5) 1. मूळमां आ प्रमाणे छे:-'महत्तरामुख्यमुख्यसाध्वीसंख्यावलयम्।' 2. असंख्यात शाश्वत प्रतिमाओनां चैत्योनी संख्या आ प्रमाणे छे:-स्वर्गमां (वैमानिक देवोना विमानोमां) 20 शाश्वत जिनप्रतिमाना चैत्योनी संख्या 84,97,023 छे। भुवनपतिमां शाश्वत जिनचैत्योनी संख्या 7,72,00,000 छ। तिर्यग्लोकमां शाश्वत जिन प्रतिमाओना चैत्योनी संख्या 3259 छ / व्यंतर तथा ज्योतिषी देवोना निवास अने विमानोमां शाश्वत जिन चैत्यो असंख्याता छ। अशाश्वत जिनप्रतिमाओना चैत्योनी संख्या अनियत छ। मनुष्योए भरावेली प्रतिमाओ अशाश्वती प्रतिमाओ कहेवाय छे। तेथी अशाश्वत जिन प्रतिमाओना चैत्योनी संख्या 25 अनियत छे / अशाश्वत अर्हत् प्रतिमाओनां चैत्योना प्रसिद्ध यात्राधामो पैकी केटलांक नीचे मुजब छ : श्री शत्रुजय, गिरनार, अष्टापद, सम्मेतशिखर, आबु, शंखेश्वर, केसरियाजी, तारंगा, अंतरीक्ष पार्श्वनाथ तीर्थ, जीरावला पार्श्वनाथ तीर्थ, स्तंभन पार्श्वनाथ तीर्थ वगेरे। 3. जो के मूळ हस्तलिखित प्रतमां 'आं श्राकसंख्यावलयम्' एवो अशुद्ध पाठ छे। तो पण पूर्वापरनो संबंध जोतां अहीं श्रावक संख्यानुं अने श्राविका संख्या- वलय अभिप्रेत जणाय छे। तेथी आ पाठना आधारे 'श्रावक 30 संख्यावलयम्' तथा 'श्राविका संख्यावलयम्' एम बे वलय अहीं जणगयां छे। अहीं बे वलय लेवामां आवे तो ज वलयोनी 24 संख्या पूर्ण थई शके / आ कारणथी पण अहीं बे वलयो जणाव्यां छे। मूळ हस्तलिखित प्रतमां 'आं श्राकसंख्यावलयम्' पाठ छ / संभव छे के 'आनंदादि श्रावकसंख्यावलयम्' एवो पाठ पण अहीं होय /
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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