________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। 229 परमलयः-आत्मन्येवात्मानं लीनं पश्यतीत्येवंरूपः // 16 // लवः-द्रव्यतो दात्रादिभिः शस्यादेर्लवनम् ; भावतः कर्मणां शुभध्यानानुष्ठानैर्लवनम् // 17 // परमलवः–उपशमश्रेणि-क्षपकश्रेणी // 18 // मात्रा-द्रव्यत उपकरणादिपरिच्छेदः; भावतः समवसरणान्तर्गतं सिंहासनोपविष्टं देशनां कुर्वाणं तीर्थङ्करमिवात्मानं पश्यति // 19 // . परममात्रा-चतुर्विंशत्या वलयैः परिवेष्टितमात्मानं ध्यायति, तद् यथाशुभाक्षरवलयं-'आज्ञाविचयादिधर्मध्यानभेदाक्षर २३–'पृथक्त्ववितर्कसविचारं' इत्यक्षराः १०–एवं 33 न्यस्यन्ते यत्र // (1) अनक्षरवलयं-"ऊससियं नीससियं" इत्यादिगाथाक्षराण्यनक्षरश्रुतवाचकानि न्यस्यते यत्र // (2) परमाक्षरवलयं-ॐ अर्ह अँ रि हँ त सि ढूँ आँ रि य उ व ज्झाँ यँ साँ हूँ नमः' इति 10 ___ न्यस्यन्ते यत्र // (3) अक्षरवलयं—'अ आ' इत्यादीनि, ईषत्स्पृष्टतर य ल व'युतानि द्विपञ्चाशन्मातृकाक्षराणि 'ह'पर्यन्तानि __ न्यस्यन्ते यत्र // (4) 16. परमलय :--आत्मामां ज आत्माने लीन थयेलो जोवो ते ‘परमलय' छ / 17. लव:--दातरडा आदिथी घास आदिनुं जे काप, ते 'द्रव्यथी लव' छ। शुभध्यान अने 15 अनुष्ठानो वडे कर्मोने जे छेदवां ते 'भावथी लव' छे। 18. परमलवः--उपशमश्रेणि तथा क्षपकश्रेणि 'परमलव' छ / 19. मात्राः---उपकरण आदिनो जे परिच्छेद (मर्यादा) ते 'द्रव्यथी मात्रा' छे। समवसरणनी अंदर सिंहासन उपर विराजीने देशना आपता तीर्थकर भगवाननी जेम पोताना आत्माने जोवो ते 'भावथी मात्रा' छे। 20 __ 20, परममात्रा:-चोवीश वलयोथी वीटायेल पोताना आत्मानुं जे ध्यान कर, ते 'परममात्रा' छे / ते वलयोनुं स्वरूप नीचे मुजब छे : (जुओ—यंत्र-चित्र नं. 2) (1) प्रथम 'शुभाक्षरवलय' छे जेमां धर्मध्यानना 4 भेदोना 'आ ज्ञा वि च य, अ पा य *वि च य, वि पाक वि च य, संस्था न वि च य' एम 23 अक्षरो तथा शुक्लध्यानना प्रथम भेदना 'पृथ क्व वि त के स वि चा र' एम 10 अक्षरो मळीने कुल 33 अक्षरोनो न्यास करवो। 25 (2) बीजं 'अनक्षरवलय' छे / आगम ग्रंथोमां अनक्षरश्रुतज्ञान विषे 'ऊससियं नीससियं' आदि जे गाथा मळे छे तेना अक्षरो आ वलयमां स्थापवामां आवे छे। संपूर्ण गाथा नीचे मुजब छे: * ऊससियं नीससियं निच्छद खासिअंच छीअंच। निस्सिघिअमणुसारं अणक्खरं छेलिआईअं॥ (3) त्रीजा ‘परमाक्षरवलय'मां 'ॐ अहं अॅरि हँ तँ सिँ हूँ आँ रि" य उँ वँ ज्झाँ यँ साँ 30 हूँ नमः' आ अक्षरोनो न्यास करवामां आवे छे / / (4) चोथं 'अक्षरवलय' छे। तेमां अ थी ह सुधीना 49 तेमज इषत्स्पृष्टतर 'य, ल, व'-आ त्रण अक्षरो एम कुल 52 'मातृका-अक्षरोनो न्यास करवामां आवे छे / * आगमोदयसमिति प्रकाशित नंदीसूत्र पृ. 187 / बृहत्कल्पसूत्र नियुक्तिमां पृ. 27 मां आ 76 मी गाथा छ। आवश्यक नियुक्तिमां पण आ गाथा छ। 35