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________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / 227 कला-द्रव्यतो मल्लादिभिर्नाडीचम्पनेन या चटाप्यते, भावतस्तु अत्यन्ताभ्यासतः स्वयमेव देशकाल-करणाद्यनपेक्ष्य या समारोहति, अन्येन त्ववतार्यते, यथा पुष्पभूतेराचार्यस्य पुष्प(ष्य ?)मित्रेण कलाजागरणं कृतम् // 5 // परमकला—या सुनिष्पन्नत्वादभ्यासस्य स्वयमेव जागति; यथा चतुर्दशपूर्विणां महाप्राणध्याने // 6 // ज्योतिः-चन्द्र-सूर्य-मणि-प्रदीप-विद्युदादि द्रव्यतः, भावतोऽभ्यासादनुलीनमनसो भूत-भवद्- 5 भविष्यबहिर्वस्तुसूचा विषयप्रकाशः // 7 // परमज्योतिः—येन सदाऽप्ययत्नेनापि समाहितावस्थायां पूर्वस्माच्चिरकालभावी प्रकाशो जन्यते॥८॥ बिन्दुः--द्रव्यतो जलादेः, भावतो येन परिणामविशेषेण जीवात् कर्म गलति // 9 // परमबिन्दुः—सम्यक्त्व-देशविरति-सर्वविरति - अनन्तानुबन्धिविसंयोजन- सप्तकक्षय - उपशामकावस्था-उपशान्तमोहावस्था-मोहक्षपकावस्था-क्षीणमोहावस्थाभाविगुणश्रेणयः, उपरितने तु द्वे गुणश्रेणी 10 केवलिन एव भवतः, इदं तु छद्मस्थस्यैव निरूप्यते / गुणश्रेणिर्नाम बहूपरितनकालवेद्यस्य दलिकस्याधः स्वल्पकालेनैव वेदनम् / उक्तं च "उवरिमठिईदलियं हेट्ठिमठाणम्मि कुणइ गुणसेढी // 10 // " 5. कला:-कलाना बे प्रकार छे—द्रव्यकला अने भावकला। मल्ल वगेरे लोको नाडी दबावीने (उतरी गयेल अंगने)चडावे छे ते द्रव्यकला जाणवी। परंतु अत्यंत अभ्यासने लीधे देश, काल, तथा करण आदिनी 15 अपेक्षा विना पोतानी मेळे ज चडे परंत बीजावडे उताराय ते भावथी कला जाणवी। जेमके आचार्य पष्पभतिनी कलाने (समाधिने) मुनि पुष्यमित्रे जागृत करी हती-उतारी हती। (आ कथा माटे जुओ परिशिष्ट-१) 6. परमकला:-अभ्यास सुनिष्पन्न थयो होवाथी जे (समाधि) पोतानी मेळे ज जागृत थाय (उतरी जाय)-जेम चौद पूर्वधरोने महाप्राण ध्यानमां थाय छे ते ‘परमकला' कहेवाय छ / 7. ज्योति:-ज्योति बे प्रकारे छे--द्रव्य ज्योति तथा भावज्योति। चंद्र, सूर्य, मणि, प्रदीप तथा 20 वीजळी वगेरे 'द्रव्यथी ज्योति' छे। अभ्यासथी जेनुं मन लीन थयुं छे तेवा मनुष्यने-भूतकाळ, वर्तमानकाळ तथा भविष्यकाळनी बाह्य वस्तुओने सूचवनारो जे विषयप्रकाश उत्पन्न थाय छे ते 'भावथी ज्योति' छे / 8. परमज्योति–उपर कहेल 'ज्योति' करतां चिरकाळ सुधी टकनारो प्रकाश हमेशां प्रयत्न विना समाधि अवस्थामां जे ध्यानथी उत्पन्न थाय ते ‘परमज्योति' कहेवाय छे / 9. बिन्दु :-जल वगेरेनुं बिन्दु ते 'द्रव्यथी बिन्दु' छे। अने जे परिणामविशेषथी आत्मा 25 उपरथी कर्म झरी जाय-खरी पडे तेवो परिणामविशेष (अध्यवसाय) 'भावथी बिन्दु' कहेवाय छे / 10. परमबिन्दु :-सम्यक्त्व, देशविरति, सर्वविरति, अनंतानुबन्धी (क्रोध, मान, माया, लोभ)नी विसंयोजना, सप्तकनो क्षय, उपशामक अवस्था, उपशांतमोहावस्था, मोहक्षपकावस्था तथा क्षीणमोहावस्था प्राप्त थती वखते जे गुणश्रेणिओ प्राप्त थाय छे ते ‘परमबिन्दु' समजवी / त्यारपछीनी बे गुणश्रेणिओ केवळज्ञानीने ज होय छे। अने अहीं तो छद्मस्थना ध्याननु ज निरुपण चाली रयुं छे / एटले ए बे गुणश्रेणिओ 30 परमबिन्दुमां गणी नथी। कर्मना जे दलियानुं घणा लांबा समये वेदन थवानुं होय तेने नीचेनी स्थितिमां नाखी दईने अल्पसमयमां ज जे वेदन करवामां आवे तेने गुणश्रेणि कहेवामां आवे छे। कयुं छे के- "उपरनी स्थितिना कर्मदलिकने नीचेना स्थानमा नाखवामां आवे ते 'गुणश्रेणि' कहेवाय छे।" 1. एकंदरे गुणश्रेणिओ 11 छ। तेमां 9 छद्मस्थने होय छे, अने 2 केवळज्ञानीने होय छ। (जुओ कर्मप्रकृति गाथा 395-396) छद्मस्थनी जे 9 गुणश्रेणिओ छे ते अहीं 'परमबिन्दु' तरीके विवक्षित छ। 35
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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