________________ [14] ध्या न विचारः॥ ध्यानं', परमध्यानम् , शून्यं, परमशून्यम् , कला, परमका, ज्योतिः', परमज्योतिः, बिन्दुः, परमबिन्दुः, नादः, परमनादः, तारों, परमतारों, लयः, परमलयः, लवैः, परमलँयः, मात्रों, परममात्रौं, पदं", परमपदमें , सिद्धिः", परमसिद्धिः" इति ध्यानमार्गभेदाः॥ उक्तं च “सुन्न-कलै-जोई-बिंदू नादों तारों लओं लवों मत्ती / पर्य-सिद्धी" परमजुया झाणाई हुंति चउवीसं // 1 // " तत्र ध्यानं–चिन्ता-भावनापूर्वकः स्थिरोऽध्यवसायः। द्रव्यतश्चात-रौदे; भावतस्तु आज्ञाऽपायै-विपाक-संस्थानविचयभिदं धर्मध्यानम् // 1 // परमध्यान-शुक्लस्य प्रथमो भेदः-पृथक्त्ववितर्कसविचारम् // 2 // ____10 अनुवाद 1. ध्यान, 2. परमध्यान, 3. शून्य, 4. परमशून्य, 5. कला, 6. परमकला, 7. ज्योति, 8. परमज्योति, 9. बिन्दु, 10. परमबिन्दु, 11. नाद, 12. परमनाद, 13. तारा, 14. परमतारा, 15. लय, 16. परमलय, 17. लव, 18. परमलव, 19. मात्रा, 20. परममात्रा, 21. पद, 22. परमपद, 23. सिद्धि, 24. परमसिद्धि-आ प्रमाणे ध्यानना मार्गो 24 प्रकारना छ। बीजे स्थळे पण कयुं छे के-१. ध्यान, 2. शून्य, 3. कला, 4. ज्योति, 5. बिन्दु, 6. नाद, 15 7. तारा, 8. लय, 9. लव, 10. मात्रा, 11. पद, 12. सिद्धि-आ प्रमाणे बार तथा दरेकनी साथे 'परम' शब्द लगाडवाथी ‘परमध्यान' वगेरे (बीजा) बार एम चोवीश भेदो थाय छे / ध्यान आदि भेदोनुं स्वरूप 1. ध्यान :-चिंता (चिंतन) अने भावनाथी उत्पन्न थयेलो जे स्थिर अध्यवसाय ते 'ध्यान' कहेवाय छे / तेना बे भेद छ : द्रव्य ध्यान तथा भाव ध्यान / द्रव्यथी ध्यान-आर्तध्यान अने रौद्र ध्यान / 20 अने आज्ञाविचय, अपायविचय, विपाकविचय तथा संस्थानविचय एम चार प्रकार- धर्मध्यान ए भावथी ध्यान छे। 2. परमध्यान:-शुक्लध्याननो 'पृथक्त्ववितर्कसविचार' नामनो जे प्रथम भेद ते 'परमध्यान' कहेवाय छ / .29