SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 224 पञ्चनमस्कारचक्रोद्धारविधिः। [प्राकृत / उपसर्ग, वेपार, जुगार आदिमा विजयी थाय छे, एम चक्रना प्रभाव, स्मरण करतो पोताने अर्ह (अरिहंत) स्वरूप चिंतवे अने पोतानी आगळ अत्यन्त उदार, प्रकाशमान, सारी रीते देवताओथी परिवृत, करोडो सूर्योना तेजथी युक्त, मिथ्यात्वरूपी अंधकारने हठाववामां कारणभूत, कोनो नाश करवामां समर्थ एवा धर्मचक्रने विचारे। पोतानी पाछळ गणधरो, चक्रवर्तिओ, इन्द्रो, देव-देवीओ, नागदेवो आदिना समूहने 5चिंतवे / आवो साधक संग्राम, व्यवहार, मारि, चोर, राजानो उपद्रव, गज, सर्प, भूत, राक्षस, पिशाच, अग्नि अने पाणी वगेरेना उपद्रवोथी पराजित थतो नथी / वळी, सर्व जनोने प्रिय थाय छे; बधां पापोथी मुक्त थाय छे तेमज वशीकरण, आकर्षण, शांतिक, पौष्टिक वगेरे बधी क्रियाओने साधी शके छे।। आ रीते पंचनमस्कारचक्रनुं त्रणे वखत गंध, पुष्प, धूप, दीप, अक्षत अने नैवेद्यथी भक्तिपूर्वक पूजन करी उपर कह्या मुजब ध्यान करे (तो) बधां पापोनो नाश थाय छे / परिचय 'अरिहाणाइथुत्तं' मा जे 'पंचनमस्कारचक्र' बताववामां आव्यु छे तेनो उद्धार आ रचनामां दर्शाव्यो छे / आ चक्रने पंचनमस्कारचक्र, पंचपरमेष्टिचक्र अगर वर्धमानचक्र एवा नामथी ओळखाववामां आव्यु छ। आ रचनानी त्रण हस्तलिखित प्रतिओ मळी छे, ते प्रतिओ ऊपरथी करावेली फोटोस्टेटिक नकलो 15 जैन साहित्य विकास मंडलना संग्रहमा विद्यमान छे, तेनां VJ Sएवी संज्ञाओथी पाठांतरो लीधां छे / S संज्ञावाली प्रतिनो पाठ मुख्य आदर्श तरीके राख्यो छे / __ आ रचना संस्कृतमां होवा छतां 'अरिहाण नमो पूयं' स्तोत्रनी साथे एनो संबंध होवाथी प्राकृतविभागमां ज तेने मूकी छे। एना कर्ता आचार्य श्रीभद्रगुप्तस्वामी होवानुं तेनी अंतिम पुष्पिकाथी जणाय छे / आ रचना अनुवाद साथे संपादित करीने अहीं मूकी छे। ते उपरथी एक चित्र तैयार कराव्युं छे, ते यंत्र20 चित्र नं. 1 मां जूओ। EPITH Aarma
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy