________________ परिशिष्ट (ध्यान माटे बीजी विधि 'नमस्कार लघुपंजिका' मां आ प्रकारे विस्तारथीं आपेली छे :-) एकान्तमां पर्यंकासने बेसी साधक पूर्व दिशामां के उत्तर दिशामां पोतार्नु मुख राखी नासिकाना अग्रभाग उपर दृष्टि राखे। पहेला पूरक, पछी कुंभक अने छेल्ले रेचक करे। पछी मस्तकभागमां पापरजने एकत्र करी घुमाडानी शिखारूपे पापरज दूर थई रही छे एम चिंतवे। पछी पोते कर्मरूपी इंधणना ढगला 5 उपर बेठेलो होय तेम मानी, तेनी नीचे दीपनी शिखाना आकारवाळु जाज्वल्यमान 'र' (अग्निबीज) चिंतवे / पछी पोताना हृदयमां पोताने स्वदेहाकारे स्थापीने 'र'कारनी नीचे 'व'कारनुं वायुरूपे चिंतन करी, ते वायु(बीज)थी प्रेरित अग्निबीज वडे पोतानुं शरीर बळतुं होय तेम विचारी, केवळ आत्मा ज पूर्व देहाकारे बाकी रह्यो होय अने बीजुं बधुं बळीने भस्मसात् थयुं होय तेम विचारी, ते आत्मानी उपर '_' बीज आकाशमां अधोमुख थई मेघरूपे अमृतने वरसावतुं होय एम चिंतवे / पछी वर्षाजळथी थयेल सरोवरमां 10 पोताने प्लावित चिंतवे / पछी ते सरोवरमां दस पत्रवाळा, विकासने पामेला कमळनी कर्णिकामां अमृतनी वर्षाथी शुद्ध थयेल पोताना आत्माने उज्ज्वळ वर्णवाळो पर्यंकासने स्थित चिंतवे। पछी फरीथी शुद्ध थवा माटे हाथमां सोळ पांखडीवाळा कमळनुं चिंतन करी, तेना पर अक्षतोथी नंद्यावर्त्त बनावी (चिंतवी) तेना पर सर्व लक्षणथी युक्त अने आठ महाप्रातिहार्य तथा चोत्रीश अतिशयोथी युक्त एवा श्री वर्धमानस्वामीनू चिंतन करे। पछी पद्मनी केसराओमां मरुदेवी आदि चोवीश तीर्थंकरोनी माताओने स्थापन करे अने 15 पत्रोमां रोहिणी आदि सोळ विद्यादेवीओने स्थापन करे। पछी ‘अरिहंत' अंगूठाना, 'सिद्ध' तर्जनीना, 'आयरिय' मध्यमाना, 'उवज्झाय' अनामिकाना अने 'साहू' कनिष्ठिकाना पर्व उपर एम क्रमे न्यास करे। पछी अ-सि-आ-उ-सा क्रमथी अंगूठा आदि उपर स्थापी पछी अंगुष्ठादि पांच आंगळीओने अनुक्रमे ऊँ नमो अरहंताणं हाँ स्वाहा // - ऊँ नमो सिद्धाणं ही स्वाहा // नमो आयरियाणं हूँ स्वाहा // ऊँ नमो उवझायाणं है स्वाहा // ऊँ नमो लोए सव्वसाहूणं ह्रौ स्वाहा / --ए मंत्रो वडे त्रणवार अभिमंत्रित करे। पछी ते मंत्रित अंगुलिओ वडे ललाट आदि पांच प्रदेशोने जमणी बाजुथी क्रमसर ललाट, शिखा, जमणा काननुं मूळ, गळानी वच्चेनो भाग, डाबा काननुं मूळ, एम 25 अभिमंत्रित करी, फरी ते ज विद्यांगुलिकाथी--एटले आंगळीओ जे विद्याथी अभिमंत्रित करी होय ते आंगळीओथी हृदय, शिर, शिखा, कवच अने अस्त्र वगेरेने त्रण वार बन्ने हाथो वडे कवच आपवोअभिमंत्रित करवा। पोताने विद्यारूप चिंतवी साधक सघळां कर्मोने साधी शके छे; एम सवारे, बपोरे अने सांजे मंत्रक्रिया करवी जोईए। आवी साधनावाळा साधकने झेर, वज्र, झेरीलां पशु-पक्षीओ, ग्रहो अने डाकिनी वगेरे पीडा करतां नथी अने तेनी आज्ञानु उल्लंघन करतां नथी। तेनुं बधुं पाप नाश 30 पामे छे। आ रीते सकलीकरण करीने 'पंचनमस्कारचक्र' चारेय बाजुथी देदीप्यमान, अनेक कोटि सूर्योना तेजवाळु, पोताना मस्तक उपर रहेलं छे, एम चिंतवी साधक ज्यां जाय त्यां सर्व उपद्रव, सर्व