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________________ 221 विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। [5] जापविधिः। अङ्गष्ठजापं मोक्षार्थी (थे), अभिचारे तु तर्जनी / मध्यमा धनकामा तु, शान्ति कुर्यादनामिका // आकर्षणे कनिष्टां तु, घरेदक्षसूत्रं विचक्षणः (1) / विशेषतः कुर्याच्च // [6] ध्यानविधिः। प्रथममात्मानं पर्यङ्कासनेन सहस्रदलपद्मोपरि स्थितं पञ्चेन्द्रियनिरुद्धं पञ्चमहाव्रतयुक्तं पञ्चसमितिसमितं त्रिकरण गप्तम. अष्टादशशीलाइसहस्रभाषितं ध्वात्वा. जया-विजया-अजिता-अपराजि मोहा-स्तम्भा-स्तम्भिन्यः, एताभिः देवताभिः सुवर्णमयकलशैः क्षीराब्धिजलभृतैः शिरसि सितपुण्डरीकाच्छादितैः स्नापयन्तीभिरात्मानं ध्यात्वा-'ॐ नमो अरहंताणं अशुचिः शुचिर्भवामि स्वाहा / ' [V. के सानिर्भवामि स्वाहा।' [VI आदशेयोरेततू 10 पाठान्तरमप्युपलभ्यते-ॐ नमो विमलाय विमलचित्ताय पवां (प्वां) वां झ्वी अशुचिः शुचिर्भवामि स्वाहा / '] इति स्नात्वा, पश्चात् सकलीकरणं क्रियते। ततश्चोत्तप्तसुवर्णवर्णं समवसरणस्थमष्टमहाप्रातिहार्यसमन्वितं चतुस्त्रिंशदतिशयोपेतमहद्भट्टारकं द्वात्रिंशत्सुरेन्द्रैः पूज्यमानं श्रीवर्द्धमानस्वामिनमभिसञ्चिन्त्य गणधराह्वानं कृत्वा वर्द्धमानमन्त्रमष्टोत्तरसहस्र जपेत् / / इति श्रीवर्द्धमानचक्रोद्धारविधिः // 15 5. जापविधिः। मोक्षनी इच्छा राखनारे अंगूठाथी, अभिचारनी इच्छावाळाए तर्जनीथी, धननी कामनावाळाए मध्यमाथी, शान्तिनी इच्छावाळाए अनामिकाथी अने आकर्षणनी अभिलाषावाळाए कनिष्टा आंगळीथी माळा फेरववी। 20 दरेक कर्म करतां पहेलां (बियासण, एकासण, नीवि, आयंबिल के उपवास आदि) कोई पण विशेष तप करवू / 6. ध्यानविधि। पछी पोताने पर्यंकासनमां, हजार पांखडीवाळा कमळ उपर बेठेलो, पांच इन्द्रियोने वश करनार, पंच महाव्रतथी युक्त, पांच-समिति अने त्रण गुप्तिआनुं पालन करवामां तत्पर, अढार हजार शीलांगथी 25 विभूषित चिंतववो; जया-विजया वगेरे आठ देवीओ क्षीर समुद्रनां जलथी भरेला अने उपरना भागमां श्वेत कमलोथी आच्छादित एवा सुवर्णमय कळशो वडे पोताने अभिषेक करती होय तेम पोते ध्यान करवं / .. 'ॐ नमो अरहंताणं अशुचिः शुचिर्भवामि स्वाहा / ' आ मंत्र वडे स्नान करी पछी सकलीकरण (एक जातनी मांत्रिक क्रिया) कराय छे। ते पछी तपावेला सोनानी जेवा वर्णवाळा, समवसरणमां स्थित, आठ महाप्रातिहार्य अने चोत्रीश अतिशयोथी युक्त तथा बत्रीश सुरेन्द्रो जेमनी पूजा करी रह्या छे, 30 एवा अर्हद् भट्टारक श्रीवर्धमानस्वामीनुं चिंतन करी, गणधर भगवंतोनुं आह्वान करी वर्धमान-मंत्रनो 1008 बार जाप करवो। इति वर्धमानचक्रोद्धारविधिः। 35 1. ( अथवा शिरसि एटले ब्रह्मरंध्रमा स्थित एवा पोताना आत्माने) 2. (बीजी प्रतिमा पाठांतरे आ मंत्र आ प्रकारे छे:-'ॐ नमो विमलाय विमलचित्ताय प्वाँ इवां इवां अशुचिः शुचिर्भवामि स्वाहा।')
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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