________________ 219 विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। शान्तिकक्रिया.. 'अर्ह अमुकं देवदत्तं वशमानय स्वाहा।' श्वेतवर्णं पनं संपुटीकृतमिव ध्यात्वा, सुरभीमुद्रां कृत्वा, गन्धादीन् दत्त्वा, त्रिसन्ध्यं [मन्त्रं] 108 शताष्टकमावर्त्तयेत् // __[इति ] शान्तिकक्रिया॥ पौष्टिकक्रिया___ 'ॐ अर्ह अमुकं देवदत्तं सँ स्वाहा।' साध्यं रक्तवर्णं वज्रमयशरीरमिव ध्यात्वा, पद्ममुद्रां कृत्वा गन्धादि दत्त्वा, त्रिसन्ध्यं मन्त्रं शताष्टक(१०८)मावर्त्तयेत्॥ [इति ] पौष्टिकक्रिया // स्तम्भनक्रिया___ 'ॐ अर्ह अमुकं देवदत्तं लँ स्वाहा।' मयूरप्रीवावर्णं वज्रलाञ्छनं पृथिव्यामवष्टभ्यमानमिव साध्यं 10 ध्वात्वा, वज्रमुद्रां कृत्वा, गन्धादि दत्त्वा त्रिसन्ध्यं मन्त्रं शताष्टकमावर्तयेत् // - [इति] स्तम्भनक्रिया।। [पञ्चमं षष्टं च कर्म उच्चाटनं मारणं च ते निरर्थकत्वान्नात्र निर्दिष्टे।] * 2. शांतिकक्रिया [ॐकारने चक्रना मध्यभागमा स्थापवो अने तेनी वचमां साध्यनुं नाम आपी पोतानुं नाम 15 हकारनी वचमां लखवु।] 'ॐ अर्ह अमुकं देवदत्तं... .................. स्वाहा' आ मंत्र-बीज वडे श्वेत वर्णन कमळ संपुटित करेलुं होय तेम ध्यान करी, सुरभिमुद्रा करी गंध वगेरेथी पूजन कर, अने मंत्रनो त्रणे संध्याए 108 वार जाप करवो। 3. पौष्टिकक्रिया [ॐकारने चक्रना मध्यभागमा स्थापवो अने तेनी वचमां साध्यनुं नाम आपी पोतानुं नाम 20 हकारनी वचमां लखवू / ] 'ॐ अहँ अमुकं देवदत्तं सं स्वाहा' आ मंत्र-बीजवडे संध्या जेवा लाल रंगवाळो अने वज्रमय शरीरवाळो साध्य छे तेम ध्यान करी पद्ममुद्रा करी गंध वगेरेथी पूजन कर, अने मंत्रनो त्रणे संध्याए 108 वार जाप करवो। 4. स्तंभनक्रिया [ॐकारने चक्रना मध्यभागमा स्थापवो अने तेनी वचमां साध्यनुं नाम आपी पोतानुं नाम हकारनी 25 वचमां लखवु।] 'ॐ अहँ अमुकं देवदत्तं लं स्वाहा' आ मंत्र-बीज वडे मोरनी डोक जेवा वर्णवाळु वज्रना लांछनथी युक्त, अने भूमिमां स्तब्ध करतुं होय ए रीते साध्यनुं ध्यान करी, वज्रमुद्रा करी, गंध वगेरेथी * पूजा करी मंत्रनो त्रणे संध्याए 108 वार जाप करवो। (पांचमो स्तंभननो अने छट्टो मारणनो विधि निरर्थक होवाथी जणावेलो नथी।)