________________ 218 पञ्चनमस्कारचक्रोद्धारविधिः। [प्राकृत [2] आत्मरक्षा। [इदानीमात्मरक्षां वक्ष्ये / ] ॐ नमो अरहताणं हाँ हृदयं रक्ष रक्ष हुँ फट् स्वाहा / ॐ नमो सिद्धाणं ह्रीं शिरो रक्ष रक्ष हुँ फट् स्वाहा। ॐ नमो आयरियाणं हूँ शिखां रक्ष रक्ष हुँ फट् स्वाहा / ॐ नमो उवज्झायाणं ह्रौ एहि एहि भगवति वज्रकवचे वज्रिणि ! रक्ष रक्ष हुँ फट् स्वाहा / ॐ नमो लोए सव्यसाहूणं हूँ: क्षिप्रं साधय साधय वज्रहस्ते शूलिनि ! दुष्टाद् रक्ष रक्ष हुँ फट् स्वाहा। [3] षट्कर्मकरणविधिः। वशीकरणम्- . ॐकारं चक्रतुम्बे स्थापयेत् / प्रणवमध्ये साध्यनाम दत्त्वाऽऽत्मनाम हकारान्तरितं स्थापयेत् / चक्रावर्तनाममुद्रां कृत्वा रक्तवर्ण[पद्म]मागत्य पादयोः पतन्तमिव ध्यात्वा, इदं मन्त्रबीजं जपेत् , त्रिसन्ध्यमष्टोत्तरशतं गन्ध-धूप-दीपादीन् दत्त्वा, 'ॐ अर्ह अमुकं देवदत्तं वशमानय वं स्वाहा // ' [इति ] वशीकरणक्रिया // 15 2. आत्मरक्षा / 'ॐ नमो अरहंताणं हाँ हृदयं रक्ष रक्ष हुँ फट् स्वाहा / ' आ पदो बोलतां हृदय पर हाथ मुकवो / 'ॐ नमो सिद्धाणं ही शिरो रक्ष हुँ फट् स्माहा / ' आ पदो बोलतां ललाटना अग्रभाग पर ___ हाथ मूकवो। 'ॐ नमो आयरियाणं हूँ शिखां रक्ष रक्ष हुँ फट् स्वाहा।' आ पदो बोलतां शिखा 20 (माथानी चोटली) पर हाथ मूकवो। ____ 'ॐ नमो उवज्झायाणं हाँ एहि एहि भगवति वज्रकवचे वज्रिणि ! रक्ष रक्ष हुँ फट् स्वाहा / ' आ पदो बोलतां शस्त्र पर हाथ फेरववो। 'ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं हूँ: क्षिप्रं साधय साधय वज्रहस्ते शूलिनि ! दुष्टाद् रक्ष रक्ष हुँ फट् स्वाहा।' आ पदो बोलतां............हाथ फेरववो।। 3. षट्कर्मकरणविधि 1. वशीकरणक्रिया ॐकारने चक्रना मध्यभागमा स्थापवो, अने तेनी वचमां साध्यनुं नाम आपी पोतानुं नाम हकारनी वचमा लखवू / पछी 'चक्रावर्त' नामनी मुद्रा करी रक्तवर्णवाळं पद्म आवीने पगे पडतं होय तेम ध्यान करी गंध, धूप अने दीप वगेरेथी प्रजन करी सवारे. बपोरे अने सांजे एम त्रण 30 वखत 'ॐ अहं अमुकं * देवदत्तं वशमानय वं स्वाहा' आ मंत्रबीजनो 108 वार जाप करवो / * 'अमुक' शब्द बोलवा माटे नथी पण त्यां जे व्यक्तिने वश करवी होय के जे व्यक्तिना निमित्ते शांति आदि कर्मो करवां होय तेनुं 'अमुकं देवदत्त' ने बदले नाम सूचववा वपरायेलो छ।