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________________ विमाग] नमस्कार स्वाध्याय / 217 तथा गर्भे–'सम्यग्ज्ञानाय नमः, सम्यग्दर्शनाय नमः, सम्यक्चारित्राय नमः।' इत्यक्षरैर्वेष्टितमहबीजं कार्यम् // कार्यकारणे तूत्पने, मण्डलमध्यसंस्थितम् / पूजयेद् यः सदा यन्त्रं, स देवैरपि पूज्यते // इति यन्त्रम् // [पञ्च]नमस्कारचक्रे लेखनविधिः // [1] ध्यानविधिः। विजु व्व पज्जलति सव्वेसु वि अक्खरेसु मत्ताओ। पंचनमुक्कारपए इक्विकें उवरिमा जाव // 1 // [25]* ससिधवलसलिलनिम्मल आयारसहं च वणियं बिंदु / जोयणसयप्पमाणं जालासयसहसदिप्पंतं // 2 // [26] सोलससु अक्खरेसुं इक्किकं अक्खरं जगुज्जोयं / भवसयसहस्समहणो जम्मि ठिओ पंचनवकारो // 3 // [27] जो थुणति हु इक्कमणो भविओ भावेण पंचनवकारं / सो गच्छइ सिवलोयं उज्जोयंतो दसदिसाओ // 4 // [28] पंचनमोक्कारपए [सव्वे ] अक्खर(रा) सोलसा हुंति / 'अरिहंत-सिद्ध-आयरिय-उवज्झाय-साहू' [एए] // 5 // इदानीं पञ्चबीजानि सकलीकरणकाले ज्ञातव्यानि-'अ सि आ उ सा।' सम्यक्चारित्राय नमः' ए अक्षरोथी वेष्टित 'अहं' बीज लखq.x कार्य-कारण उत्पन्न थतां जे मंडलना मध्यभागमा रहेल यंत्रनु पूजन करे छे ते देवो वडे पण 20 पूजाय छ / आ. प्रमाणे पंच-नमस्कार-चक्रनो लेखनविधि पूरो थयो। 1. ध्यानविधि / ध्यानविधिमां आपेली प्रथमनी चार गाथाओ मूळ 'अरिहाण' स्तोत्रनी 25, 26, 27 अने 28 मी गाथाओ छ। तेथी तेनो अनुवाद मूल स्तोत्रमांथी जोई लेबो, अहीं आप्यो नथी। पांचमी गाथानो अनुवाद नीचे प्रमाणे छे : 25 पंचनमस्कारनां पदोमां सोळ अक्षरो छे :-'अरिहंत सिद्ध आयरिय उवज्झाय साहू / ' तात्पर्य के पंचपरमेष्ठीचक्रनुं आराधन करतां आ सोळ अक्षरनुं ध्यान धरवानुं छे। सकलीकरण समये आ पांच बीजो ध्यानमा लेवां :-'अ सि आ उ सा।' * कोष्ठकगताङ्काः 'अरिहाण' स्तोत्रस्य गाथाङ्का विज्ञेयाः। x बीजी प्रतिमां आगळनो पाठ आ प्रमाणे मळे छ :-मायाबीज 'ही'कार वडे वेष्टित करी, 'को' बीज वडे 30 परो करी, चारेय दिशाओमा एकार अने खूणाओमां यकार लखी, कळशना आकारवाळु वरुणमंडळ-वर्तुलाकार बनाववो, ते पछी पृथ्वीमंडल-चतुरस्त्राकार, वज्रना लांछनवाळु; कपूर, कस्तूरी, कुंकुम, गोरोचन वगेरे (8) सुगंधित द्रव्यो वडे: .. सोनानी जातिनी के दर्भनी लेखनीथी यंत्र लखवू / पहेला वागभव--'ऐ"" बीज पछी मायाबीज-'ह्री' बीज अने छेडे 'नमः' एम आखा मंत्र पटमां (सारं लागे ते रीते) लखवू / .28
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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