________________ दिमाग] नमस्कार स्वाध्याय। सयलुञ्जोइयभुवणं विदावियसेससत्तुसंघायं / नासियमिच्छत्ततमं वियलियमोहं हततमोहं // 36 // (29) (यंत्रध्यान- फळ-) ___ आ(यंत्र )नुं ध्यान बधा भुवनोने प्रकाशित करनारूं, सर्व शत्रुओना समूहने नसाडनाएं, मिथ्यात्वरूपी अंधकारनो नाश करनालं, मोहने दूर करनारुं अने अज्ञानना समूहने हणनारुं छे॥३६॥ (प्रति-परिचय) आ स्तोत्रनो केटलेक स्थळे 'पंचपरमेद्विथुत्त' नाम उल्लेख करेलो मळे छ / श्रीहेमचंद्राचार्ये पोताना 'सिद्धहेमचंद्रशब्दानुशासन' उपर रचेला स्वोपज्ञ बृहन्यास (शब्दमहार्णवन्यास )मां 'अहे' सूत्र उपर से व्याख्या करी छे तेमां आ स्तोत्रनी 13 मी गाथानुं प्रमाण आपतां आ स्तोत्रनुं 'पंचपरमेष्ठिस्तुति' एवं संस्कृतमय नाम उल्लेख्यु छे / वळी, श्रीजिनप्रभसूरिरचित 'विधि-10 मार्गप्रपा' मां आ स्तोत्र- 'परमेट्टिथवण' नाम आप्युं छे / ज्यारे केटलीक हस्तलिखित प्रतिओमां, खास करीने भत्तिभरस्तोत्र उपरनी 'नमस्कारव्याख्यानटीका'मां आ स्तोत्रनुं नाम 'महानिशीथस्तोत्र' होवानुं दर्शाव्यु छ / आ स्तोत्रना कर्ता विशे कोई माहिती मळी नथी / स्तोत्रनी रचनामां जैन परंपरानी मंत्र अने ध्यानविषयक प्राचीन ध्यानप्रणालीनी छाप अंकित थयेली जोवामां आवे छे; जेनी नं. 14 'ध्यानविचार' मां दर्शावेली परिभाषाथी पुष्टि मळे छ / आ 15 'ध्यानविचार' कृतिरत्न हस्तलिखित भंडारना अनेक ग्रंथोना पेटाळमां पडेलोअचानक हाथ आव्यो, जेना आधारे आ स्तोत्रमा निर्देश करेला ध्यानविषयक पारिभाषिक शब्दोनुं भावोद्घाटन सुकर बन्युं छे। वळी, अरिहंत भगवाननी आगळ चालता धर्मचक्रतुं यंत्रस्वरूप प्रगट करीने नमस्कारमंत्र संबंधी ध्याननो विशिष्ट प्रकार प्रदर्शित कर्यो छे / आ यंत्रनो भाव ए छे के, पोताना लक्ष्यनी सिद्धिने माटे आपणा ध्यानने अन्यत्र न जवा देतां पोतानी नैसर्गिक शक्तिओने नियमपूर्वक जागृत 30 करीने ए तरफ वाळवानो प्रयोग करवो ते छे / वस्तुतः यंत्र-ध्यान आत्मा उपर लागेला राग-द्वेषरूप मळ दूर करवामां अने आत्मस्वभावनी रमणता केळववामां उपयोगी साधन थई पडे छे / आ यंत्रनी आलेखनविधि माटे जूओ नं. 13, अने यंत्रनी आकृति माटे जूओ चित्र नं. 1 / ___ आ सिवाय मार्गमां शत्रु अथवा चोरने दूर करवा माटे धनुर्विद्यानो जे प्रयोग कराय छे तेनो उल्लेख आ स्तोत्रमा करेलो छ / 25 आ स्तोत्रमा खास करीने पांच विषयोनुं निरूपण छेः 1 नमस्कारसूत्रनुं रहस्य, 2 चार शरणोनुं रहस्य, 3 पंचनमस्कारचक्र 4 ध्याननी प्रक्रिया, अने 5 धनुर्विद्या। आ विषयो उपर विचार करवामां आव्यो त्यारे एनी गाथाओना क्रममा एकसूत्रता लागती नहोती / तेथी आ रचना संकलित करवामां आवी होय एवं अनुमान थाय छ / जो के, आ स्तोत्रनी 20-25 जेटली हस्तलिखित प्रतिओ मळी छे तेमां, तेमज पांचेक स्थळे प्रकाशित थयेल आ लोचनो पाठक्रम एक ज प्रकारनो उपलब्ध थाय छे / मात्र एक हस्तलिखित