________________ wwwm अरिहाणाइथुत्तं। [प्राकृत 'नमो अरिहंताणं तिलोयपुजो य संथुओ भयवं / अमर-नर-रायमहिओ अणाइनिहणो सिवं दिसउ // 33 // (26)* सव्वे पओसमच्छर आहियहियया पणासमुंवयंति / हूँगुणीकयधणुसदं सोउं पि महाधणु सहसा // 34 // (27) इय तिहुयणप्पमाणं सोलसपत्तं जलंतदित्तसरं / अट्ठार अट्ठवलयं पंचनमोक्कारचक्कमिणं // 35 // (28) -"अनेन स्वस्याङ्गप्रत्यङ्गपरामर्शः कार्यः / ततः "ॐ धनु धनु महाधनु स्वाहा” इमां धनुर्विद्यां वामकरामुलीपर्वसु विन्यस्य प्रतिमाग्रे वामपादाङ्गुष्ठेन सरेफामपुरस्सरं धनुरालिख्य वामपादेनाक्रम्य कायोत्सर्गेण स्थितः सन् “ॐ णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वासाहूणं; थंभेइ जल-जलणं चिंतियमित्तण पंचणमोकारो / अरि-मारि-चोर-राउल घोरुवसग्गं हा ही हूँ हौँ हः विणासेइ स्वाहा / / इदं सप्तवारान् हृद्युच्चार्य अष्टोत्तरशतं धनुर्विद्यामावर्तयेत् // इति सकलीकरणविधानम् // " अर्थ-आ गाथाथी पोताना अंग अने तेना अवयवोनो विचार करवो। ए पछी “ॐ धनु धनु महाधनु स्वाहा" आ प्रकारनी धनुर्विद्याने डाबा हाथनी आंगळीओना वेढाओमा स्थापन करीने प्रतिमानी आगळ डाबा पगना अंगूठा वडे हींकारपूर्वक धनुष्यनु आलेखन करीने, तेने डाबा पगथी ओळंगवू / ते पछी काउसग्गमा स्थिर बनीने “ॐ णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइ(य)रियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं थंभेइ जलजलणं चिंतियमित्तेण पंचणमोकारो / अरिमारिचोरराउलघोरुवसग्गं हाँ हाँ हूँ हौँ हः विणासेइ स्वाहा" आ मंत्रनो सात वार हृदयमा उच्चार करवो अने एकसो ने आठ वार धनुर्विद्यानो जाप करवो // आ प्रकारे सकलीकरण कराय छे // 32 // अरिहंतने ॐकारपूर्वक नमस्कार थाओ। जे भगवान त्रण लोकना पूज्य छे, सारी रीते स्तुति करायेला छे, इंद्र अने राजाओवडे पूजायेला छे अने जन्म-मरणथी रहित छे ते अमने मोक्ष आपो॥३३॥ बेवडो करायेलो 'धणु' शब्द अने 'महाधणु' शब्द अर्थात् “ॐ धणु धणु महाधणु महाधणु [खाहा]"-ए प्रकारनी विद्या सांभळनार बधा ईर्ष्यालु द्वेषथी भरेला हैयावाळा 2 शीघ्र नाश पामे छे // 34 // (पंचपरमेष्ठीचक्रनो महिमा-) सोळ पत्रवाळ, ज्वलंत अने देदीप्यमान स्वरोवाळु तथा आठ आरा अने आठ वलयोथी युक्त आ 'पंचनमस्कारचक्र' (वर्धमानचक्र अथवा पंचपरमेष्ठीचक्र) त्रिभुवनमा प्रमाणभूत छे // 35 // १नमह अ°। 2 संठिओं v / * एतद्गाथानन्तरं I आदर्शयोरियमधिकी गाथा दृश्यते-"निढवियअटकम्मो सुइभूयनिरंजणो सिवो सिद्धो / अमरनररायमहिओ अणाइनिहणो सिवं दिसउ॥ 4 मुवति / 5 दुगुणिकय / / 6 अट्ठारं अPIS प्रतौ समाप्त्यन्ते 'महानिशीथस्तोत्रं समाप्तमिति' पाठः।