________________ 209 विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / सोलससु अक्खरेसुं'इकिकं अक्खरं जगुजोयं / भवसयसहस्समहणो जम्मि ठिओ पंचनवकारो // 27 // (20) जो थुणति हु इक्कमणो भविओ भावेण पंचनवकारं / सो' गच्छइ सिवलोयं उजोयंतो दसदिसाओ // 28 // (21) तव-नियम-संजमरहो पंचनमोक्कारसारहिनिउत्तो। नाणतुरंगमजुत्तो नेइ पुरं परमनिव्वाणं // 29 // (22) सुद्धप्पा सुद्धमणा पंचसु समिईसु संजय तिगुत्ता / जे तम्मि रहे लँग्गा सिग्धं गच्छंति सिवलोयं // 30 // (23) थंभेइ जलं जलणं चिंतिय मित्तो वि पंचनवकारो। अरि-मारि-चोर-राउल-घोरुवसग्गं पणासेइ // 31 // (24) 10 अद्वैव य अट्ठसया अट्ठसहस्सं च अट्ठकोडीओ। रक्खंतु मे सरीरं देवासुरपणमिया सिद्धा // 32 // (25) सोळ अक्षरो(अँ हँ तँ सिँ हूँ आँ यँ रि य उ + ज्झाँ यँ साँ हूँ )मांनो एकेक अक्षर जगतने प्रकाश करनारो छे अने जे ( अक्षरो)मां आ पंचनमस्कार स्थित छे ते लाखो भव (जन्म-मरण ) नो नाश करे छे // 27 // जे भविक-भव्य पुरुष एकचित्ते भावथी आ पंचनमस्कारनी स्तुति करे छे, ते दशे दिशाओने प्रकाशित करतो करतो मोक्षमा निश्चयपूर्वक जाय छे // 28 // . जेने तप, नियम अने संयमरूपी रथ छे, जेने पंचनमस्काररूपी सारथि छे अने जे ज्ञानरूपी घोडाओथी जोडायेल छे ते परमनिर्वाणपुर-मोक्षपुरीमा जाय छे // 29 // ___ शुद्ध मनवाळो, ईर्यादि पांचे समितिओथी युक्त तथा मनगुप्ति, वचनगुप्ति अने कायगुप्तिथी 20 गुप्त ( इंद्रियोनो गोपवनार ) जे शुद्ध आत्मा विजयवंत एवा आ रथमां बेसे छे ते तरत मोक्षमां जाय छे // 30 // आ पंचनमस्कार चिंतन मात्रथी जळ अने अग्निने थंभावे छे तथा शत्रु, महामारी, चोर, तेमज राजकुळ द्वारा थता भयंकर उपद्रवोनो नाश करे छे // 31 // देवता अने असुरो आठ, आठ सो, आठ हजार के आठ करोड सिद्धो मारा शरीरनी रक्षा करो॥३२॥ 25 [विशेष-वि. सं. पं. आशाधरे रचेला "प्रतिष्ठासारोद्धार" (प्रका० जैन ग्रंथ उद्धारक कार्यालय, मुंबई, 1974 ) पृष्ठः 86 मां नीचे मुजब गाथा अने तेनी टीका आपी छे:___“ॐ अट्ठेव य अट्ठसया अट्ठसहस्सा य अट्ठकोडीओ। रक्खंतु मे सरीरं देवासुरपणमिया सिद्धा // 7 // स्वाहा // " 1 एकेके / 2 थुणइ हु, थुणई एक / 3 सो वच(च)इ। 4 नेइ फुडं प / ५तिगुत्तो SPJ | इलागोस / 7 चिंतियमेत्तो छ / 15