________________ 208 [प्राकृत अरिहाणाइथुत्तं। सयलम्मि वि' जीयलोऍ चिंतियमेत्तो करेइ सत्ताणं / रैक्खं रक्खस-डाइणि-पिसाय-गह-जक्ख-भूयाणं // 21 // (14) लहइ विवाए वाए ववहारे भावओ सरंतो य। जुए रणे य रायंगणे य विजयं विसुद्धप्पा // 22 // (15) पच्चुस-पओसेसुं सययं भव्यो जणो सुहज्झाणो। एवं झाएमाणो मुक्खं पइ साहगो होइ // 23 // (16) वेयाल-रुद्द-दाणव-नरिंद-कोहंडि-रेवईणं च / सव्वेसि सत्ताणं पुरिसो अपराजिओ होई // 24 // (17) विज्जु व्व पजलंति सव्वेसु वि अक्खरेसु मत्ताओ। पंचनमुक्कारपए इंकिके उवरिमा जाव // 25 // (18) ससिधवलसलिलनिम्मल आयारंसहं च वणियं बिंदु / जोयणसयप्पमाण जालासयसहसंदिप्पत // 26 // (19) 10 ___ आ प्रकारे चिंतनमात्रथी नमस्कार राक्षस, डाकिनी, पिशाच, ग्रह, यक्ष अने भूत-प्रेतोथी बधाय जीवलोकमां प्राणीओनी रक्षा करे छे // 21 // 15 आ (मंत्र) नुं भावथी स्मरण करतो विशुद्ध आत्मा विवादमां, वादमां, व्यवहारमा, जुगारमां, रण. युद्धमां अने राजाना आंगणे (राजद्वारमा) पण विजयने प्राप्त करे छे // 22 // ___आ (नमस्कार मंत्र) नुं शुभ ध्यान करनारो भव्य मानवी सवारे अने सांजे निरंतर आवी रीते ध्यान करतां करतां मोक्ष प्रति साधक बने छे // 23 // आ पंचनमस्कार- ध्यान करनारो पुरुष वेताल, रुद्र (आ बंने रौद देवो छे), राक्षस, राजा तेमज 20 कूष्मांडी अने रेवती (आ बंने रौद्र देवीओ छे), तेमज बधा प्राणीओथी अपराजित बने छ / (अर्थात् आ बधा ते ध्यानी आत्माने कंई नुकसान करी शकता नथी।) // 24 // पंचनमस्कार पदमां सर्व अक्षरोमां (अ रि ह त सिद्ध आ य र य उ व ज्झा य साए सोळ अक्षरोमां) पण दरेक अक्षर उपर रहेली मात्राओ वीजळी जेवी जाज्वल्यमान (झळहळती) छे अने दरेक अक्षर उपर चन्द्रमा जेवू उज्ज्वळ, जळ जेवू निर्मळ हजारो आकारवाळ," वर्णयुक्त, सेंकडो योजन प्रमाण, 25 लाखो ज्वाळाओथी दीपतुं बिंदु छे // 25-26 // 1 वि जियलोए SPJ / 2 यमित्तो य पंचनवकारो।। 3 रक्खइ र / 4 एयं झा° SPJ | 5 मोक्खपयसाहणो होइ / 6 होइ SPJ 7 एक्कक्के / 8 जा उ S / 9 °सहियं वs। १०हस्सदि SPI 11 'नमस्कार लघुपंजिका' मां 'आयारसहस्सं' एवो पाठ छ / आ गाथा त्यां पण आवे छे।