________________ 207 नमस्कार स्वाध्याय। चत्तारि चेव ससुरासुरस्स लोगस्स उत्तमा हुंति / अरहंत-सिद्ध-साहू धम्मो जिणदेसियमुयारो // 16 // (9) चत्तारि वि अरहंते, सिद्धे साहू तहेव धम्मं च / संसारघोररक्खसभएण सरणं पवञ्जामि // 17 // (10) अह 'अरहओ भगवओ महइ महावीरवद्धमाणस्से / पणयसुरेसरसेहरवियलियकुसुमच्चियकमस्स // 18 // (11) जस्स वरधम्मचकं दिणयरबिंब व भासुरच्छायं / तेएण पज्जलंतं गच्छइ पुरओ जिणिंदस्स // 19 // (12) आयासं पायालं सयलं महिमंडलं पयासंतं / मिच्छत्तमोहतिमिरं हरेइ तिहंपि लोयाणं // 20 // (13) 5 10 अरिहंत, सिद्ध, साधु अने जिनेश्वरोए उपदेशेलो उदार धर्म-ए चार ज देवो अने असुरोथी युक्त एवा लोकमां उत्तम छे // 16 // संसाररूप भयंकर राक्षसना भयथी हुं अरिहंतो, सिद्धो, साधुओ अने (जिन-)धर्म-ए चारनुं शरण स्वीकारुं छु // 17 // [हवे चक्र-यंत्र द्वारा परमेष्टीनुं ध्यान करवानी रीत बतावे छे। आ चक्रने 'पंच-15 नमस्कारचक्र', 'वर्धमानचक्र' अथवा 'पंचपरमेष्ठीचक्र' पण कहे छे। तेमां सर्व प्रथम मंत्रने ते ते पदोनी महत्ता दर्शाववा पूर्वक जणावे छ / मूलनी गाथाओमां रेखांकित शब्दो मंत्रना छे। आनुं यंत्र केम बनावq तेनी रीत आ स्तोत्र पछी प्रगट करवामां आवेला 'वर्धमानचक्रोद्धारविधि' नं. 13 मां आपेली छे, तेनुं यंत्र-चित्र नं. 1 तरीके प्रगट कर्यु छे।] हवे सूर्यबिंबनी जेम देदीप्यमान प्रभावाळू तेजथी जाज्वल्यमान एवं धर्मवरचक्र जेमनी 20 आगळ चाले छे अने नमन करता इन्द्रोना मुकुटथी खरेलां पुष्पोथी जेमनां चरण पूजाएल छे एवा महान महावीर अरिहंत भगवंतने नमस्कार हो // 18-19 // आकाश, पाताल अने समग्र पृथ्वीमंडलने प्रकाशित करतुं ते चक्र त्रणेय लोकना मिथ्यात्व अने मोहस्वरूप अंधकारने दूर करे छे // 20 // 1 धम्मो तिलोयमंगल्लो S / 2 अरहंत-सिद्ध-साहू P, अरिहंते / ३रक्खस्स भs। 4 भगवओ नमो 25 अरहओ म°s। 5 माणसामिस्स S / 6 °सुरासुरs। 7 वच्चइड।