________________ 206 [प्राकृतं अरिहाणाइथुत्तं / एयं कवयमभेयं खाइयमत्थं पैरा भवणरक्खा / जोई सुन्नं बिंदु नाओ तारा लँवो मत्ता // 12 // (34) सोलसपरमक्खरबीयबिंदुगब्भो जगुत्तमो जोओ / सुयबारसंगसायरमहत्थ-पुव्वत्थ-परमत्थो // 13 // (35) नासेइ चोर-सावय-विसहर-जल-जलण-बंधणसयाई / चिंतितो रक्खस-रण-रायभयाई भावेण // 14 // (36) चत्तारि मंगलं मे हुंतुऽरहंता तहेव सिद्धा य / साहू अ सव्वकालं धम्मो य तिलोयमंगल्लो // 15 // (8) आ पंचनमस्कार ए परम अभेद्य कवच छे, परम खातिका (खाई, खाडी) छे, परम अस्त्र छे; 10 परम भवनरक्षा छे, परम ज्योति छे, परम शून्य छे, परम बिन्दु छे, परम नाद छे, परम तारा छे, परम लव छे, परम मात्रा छे // 12 // * (आ नवकार) सोळ परमाक्षररूप बीजो (अ र ह त सिद्ध आ य रि य उ व ज्झा य सा है) अने सोळ परम बिंदुओ छे गर्भमां जेना एवो लोकोत्तम (मंत्राक्षरोनो) योग छे [अथवा-सोळ परमाक्षररूप बीजो अने बिन्दुओ जेनी मध्ये रहे छे—एवो जगतमां उत्तम योग छे] अने द्वादशांगरूप श्रुतसागरनो 15 महार्थ, अपूर्वार्थ अने परमार्थ छे // 13 // ___ (उपर्युक्त) भावपूर्वक स्मरण करायेलो आ मंत्र चोर, हिंसक प्राणीओ, विषधर-सर्प, जळ, अग्नि, बंधन, राक्षस, युद्ध अने राज्यना भयोने नसाडी मूके छे // 14 // ___ अरिहंतो, सिद्धो, साधुओ अने त्रणे लोकमां मंगल एवो धर्म-ए चार मने सर्वकाळ मंगल थाओ। [अथवा—आ चार मने सर्वकाळ मंगल थाओः अरिहंतो, सिद्धो, साधुओ अने त्रिलोकमंगल 20 धर्म / ] // 15 // 5 1 खाइयसत्थं J / 2 परा भुवण° PV, परा भुवणकित्ती / 3 जोइ सु° P / 4 लवो वि मत्ता PI 5 मत्तो। 6 जो उ JI 7 बंधखकयाई / 8 धम्मो जिणदेसियमुदारो S / - परमज्योति, परमार नगेरे कान्होजी रामज माटे उओ-हने पळी पायल यानविचार' (विषय नं. 1