________________ विभाग] 205 नमस्कार स्वाध्याय / सव्वेसिं साहूणं नमो तिगुत्ताण सव्वलोए वि / तंव-नियम-नाण-दसणजुत्ताणं बंभयारीणं // 5 // एसो परमेट्ठीणं पंचण्ह वि भावओ नमोकारो। सबस्स कीरमाणो पावस्स पणासणो होइ // 6 // भुवणे वि मंगलाणं, मणुयासुर-अमर-खयरमहियाणं / सव्वेसिमिमो पढमो हवइ महामंगलं पढमं // 7 // एसो परमो मंतो परमरहस्सं परंपरं तत्तं / नाणं परमं नेयं सुद्धं झाणं परं झेयं // 8 // (33) एंयस्स य मज्झत्थो, सम्मदिट्ठी विसुद्धचारित्तो / नाणी पवयणभत्तो गुरुजणसुस्सूसणापरमो // 9 // (30) जो पंच नंमोकारं परमो पुरिसो पराइ भत्तीए / परियत्तेइ पइदिणं पयओ सुद्धप्पओ अप्पा // 10 // (31) अद्वैव-य अट्ठसयं अट्ठसहस्सं च उभयकालं पि / अटेव य कोडीओ सो तइयभवे लहइ सिद्धिं // 11 // (32) 10 20 (1) त्रण गुप्तिनुं पालन करनारा, (2) तप, नियम, ज्ञान अने दर्शनथी युक्त, तेमज (3) 15 ब्रह्मचारी (निर्वाण साधक आत्महितकारी क्रिया करनारा*) एवा समग्र लोकमां रहेला सर्व साधु भगवंतोने नमस्कार थाओ॥५॥ पांचेय परमेष्ठीओने भावपूर्वक करेलो आ नमस्कार समग्र पापोनो नाश करनारो बने छे // 6 // ." आ भुवनमां पण मनुष्य, असुर, देव अने खेचरो-थी पूजित जेटला मंगलो छे ते बधामां आ नमस्कार प्रथम छे, तेथी ते प्रथम महामंगल छे // 7 // __ आ (नमस्कार) परममंत्र छे, परमरहस्य छे, परात्पर (परथी पण पर) तत्त्व छे, परमज्ञान छे, परमज्ञेय छे, शुद्ध ध्यान छे अने सर्वश्रेष्ठ ध्येय छे // 8 // . जे उत्तम पुरुष मध्यस्थ, सम्यग्दृष्टि, विशुद्ध चारित्रवान् , ज्ञानी, प्रवचनभक्त अने गुरुजननी शुश्रूषामां तत्पर होय ते पराभक्ति अने प्रणिधानपूर्वक शुद्ध पदोच्चारण सहित (शुद्ध प्रयोगात्मा) प्रतिदिन बन्ने संध्याए आ पंचनमस्कारनो आठ वार, आठसो वार, आठ हजार वार [आठ लाख वार (पाठांतर 25 मुजब)] अगर आठ करोड वार जाप करे छे ते त्रीजा भवमां सिद्धि पामे छे // 9-11 // 1 तह नि° V / 2 परमिठ्ठीणं JPS | 3 पंचण्हं वि J / 4 णमुक्कारो J, नमुक्कारो P / 5 सुयणे वि s / 6 होइ JVI 7 परंपरातत्तं S / 8 एय सया म° P, एवं सय J / 9 नमुक्कारं JSP / 10 च अट्ठलक्खाई S / . 'ब्रह्म' एटले कुशळ अनुष्ठान अथवा आत्महितकारी क्रिया समजवानी छ। जुओ 'स्थानांगसूत्र' 9 मा स्थाननी टीका। 30