________________ [12] अरि हा णा इ थुतं [पंचपरमिट्ठिनमुक्कारथुत्तं / अरिहाण नमो पूयं अरहंताणं रहस्सरहियाणं / पयओ परमेट्ठीणं अरुहंताणं धुयरयाणं // 1 // निद्दडअट्ठकम्भिधणाण वरनाण-दंसणधराणं / मुत्ताण नमो सिद्धाणं परमपरमेट्ठिभूयाणं // 2 // आयारधराण नमो पंचविहायारसँट्ठियाणं च / नाणीणायरियाणं आयाख्वएसयाण सया // 3 // बारसविहंगपुव्वं दिताणं सुयं नमो सुयहराणं। सययमुवज्झायाणं सज्झायज्झाणजुत्ताणं // 4 // 10 अनुवाद (1) * पूजाने योग्य (-अर्ह-अरिह) होवाथी 'अरिहंत', (2) जेमनाथी कोई वस्तु गुप्त न होवाथी 'अरहंत', (अथवा रहस्य एटले अंतरायकर्म, तेनाथी रहित होवाथी अरहंत); वळी, (3) जेमणे 15 कर्मरूपी रज दूर करेली होवाथी संसारमा फरी वार उत्पन्न थवाना नथी तेथी 'अरुहंत' (प्रथम परमेष्ठीपदने पामेला) देवाधिदेव अरिहंत (अरहंत, अरुहंत) भगवंतोने प्रणिधानपूर्वक नमस्कार थाओ // 1 // (1) आठ कर्मोरूपी इंधनने (शुक्ल ध्यानथी) सर्वथा बाळी नाखनार, (2) श्रेष्ठ केवळज्ञान अने केवळदर्शनने धारण करनार (कृतकृत्य थनार), (3) मोक्षपदने पामेला (अपुनरावृत्तिथी जेओ निर्वृतिपुरीमा पहोंच्या छे–जे नित्य अने अविनाशी छे, ते), (4) परमपरमेष्ठी स्वरूप-एवा सिद्ध 20 भगवंतोने नमस्कार थाओ // 2 // (1) (गच्छना नायक तरीके), आचारने धारण करनारा (2) पंचविध आचारमा सुस्थित (आचारने स्वयं आचरनारा), (3) सदा आचारनो उपदेश करनारा—एवा (अर्थना वाचक होवाथी), (4) ज्ञानी आचार्य भगवंतोने नमस्कार थाओ // 3 // (1) (पाठांतरने आधारे)-बार प्रकारनां अपूर्व श्रुतने आपनारा (अध्ययन करावनारा) (2) 25 श्रुतधरने धारण करनारा तेमज (3) स्वाध्याय अने ध्यानथी सतत युक्त-एवा उपाध्याय भगवंतोने नमस्कार थाओ॥४॥ 1 अरिहंताणं न P1 2 अरिहं S / 3 परमिठ्ठीणं JPS | 4 अरहं° sv | 5 परमं परमिठ्ठि P, परमपरमिटि JS | 6 आयर / 7 सुद्धियाणं P / 8 विहं अपुव्वं JPS | 9 दिट्ठाण J, दित्ताण S / * अहीं (1) (2) वगेरे अंको आपेला छे ते, ते ते परमेष्ठीओना विशेषणोनी गणतरी बतावे छे।