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________________ 191 नमस्कार स्वाध्याय। नमो बारसगुणअसोअवरपायवपूईआणं अरिहंताणं // 82 // नमो मणि-कणगविचित्तदंडमयचारुचामरवीईआणं अरिहंताणं // 83 // नमो जाणुप्पमाणभरियपु(प्फ)पयराणं अरिहंताणं // 84 // नमो दिणयरसमतेअधम्मचक्कसंसोहिमअग्गविभागाणं अरिहंताणं // 85 // नमो निम्मलभामंडलमंडिअपिट्ठविभागाणं अरिहंताणं // 86 // नमो देवदुंदुहिनिनायसंसइयतिहुअणरायत्तणपत्ताणं अरिहंताणं // 87 // नमो सुर-नर-तिरिआणं संजणियपडिबोहवाणीगुणसंपत्ताणं अरिहंताणं // 88 // नमो भविअजणकमलपयासगाणं अरिहंताणं // 89 // नमो चउद्दसपुव्वाणं बीयभूयपयतियदाणदायगाणं अरिहंताणं // 9 // नमो चउद्दसपुव्वसुत्तकारगसीसाण गणहरपयसंठावगाणं अरिहंताणं // 91 // 10 नमो सव्वसुरासुरनमू(म)सिअचउव्विहसमणसंघसंठावगाणं अरिहंताणं // 92 // नमो सव्वपाणभूअजीअसत्तकारुण्णभावपत्ताणं अरिहंताणं // 93 // (अर्हत्ना शरीरथी) बारगणा ऊंचा एवा श्रेष्ठ अशोक वृक्ष वडे पूजा करायेला अरिहंत भगवंतोने नमस्कार थाओ // 82 // मणि अने सुवर्णथी जडेला नानारंगवाळा (रंगबेरंगी) दंड (हाथा)वाळा सुंदर चामरोथी वींझाता 15 अरिहंत भगवंतोने नमस्कार थाओ॥ 83 // जेमनी आजुबाजु जानुप्रमाण पुष्पसमूह एकत्र थयो छे एवा अरिहंत भगवंतोने नमस्कार थाओ॥८४॥ जेमनी आगळना मागमा सूर्य जेवा तेजवाळु धर्मचक्र शोभे छे एवा अरिहंत भगवंतोने नमस्कार थाओ // 85 // . . जेमनी पाछळनो भाग निर्मळ भामंडळथी शोभित छे एवा अरिहंत भगवंतोने नमस्कार थाओ // 86 // 20 देवदुन्दुभिंना अवाजथी जणावाता त्रिभुवनना राजपणाने प्राप्त थयेला एवा अरिहंत भगवंतोने - नमस्कार थाओ // 87 // देवो, मनुष्यो अने तिर्यंचोने प्रतिबोध करनारी एवी वाणीना गुणोने प्राप्त थयेला छे एवा अरिहंत भगवंतोने नमस्कार थाओ॥ 88 // . भव्य जीव रूप कमलोनो विकास करता अरिहंत भगवंतोने नमस्कार थाओ // 89 // 25 चौद पूर्वोना बीजभूत त्रण पदो (उपन्नेइ वा विगमेइ वा धुवेइ वा )नुं दान करता अरिहंत भगवंतोने नमस्कार थाओ // 90 // चौद पूर्वोनां सूत्रोने बनावनारा शिष्योने गणधरपदे स्थापन करता अरिहंत भगवंतोने नमस्कार थाओ // 91 // समस्त सुर अने असुरो वडे वंदायेला एवा चतुर्विध श्रमण वगेरे संघनी संस्थापना करनारा 30 अरिहंत भगवंतोने नमस्कार थाओ॥९२॥ सर्व प्राणो, भूतो, जीवो अने सत्त्वो प्रत्ये कारुण्यभावने प्राप्त थयेला अरिहंत भगवंतोने नमस्कार थाओ // 93 //
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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