SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अहन्नमस्कारावलिका। [प्राकृत नमो अंजणघणसरिसाण केसाण पंचमुट्ठिए लोअकारगाणं अरिहंताणं // 43 // नमो लोगग्गमुवगयसव्वसिद्धाणं नमोकारकारगाणं अरिहंताणं // 44 // नमो सव्वसावजपावजोगपञ्चक्खाणकारगाणं अरिहंताणं // 45 // नमो नाण-दसण-चारित्तरयणमालामंडिआणं अरिहंताणं // 46 // नमो विमलविउलमइ-मणपजवनाणसमुप्पन्नाणं अरिहंताणं // 47 // नमो सम(मि)इ-गुत्तिगुणरयणअलंकिआणं अरिहंताणं // 48 // नमो दसविहसमणधम्मस्स संधारगाणं अरिहंताणं // 49 // नमो पुक्खरपत्त व्व निरुवलेवाणं अरिहंताणं // 50 // नमो जीवो व्व अप्पडिघाइविहारवरकारगाणं अरिहंताणं // 51 // 10 नमो आयासु व्व निरासयगुणसंसोहिआणं अरिहंताणं // 52 // - नमो अक्खलियपवर्णगुण ब्व अप्पडिबद्धाणं अरिहंताणं // 53 // ... नमो संगोविअंगोवंगकुम्म व गुतिदिआणं अरिहंताणं // 54 // . अति श्याम अंजन जेवा वाळोनो पांच मूठीओथी लोच करता अरिहंत भगवंतोने नमस्कार थाओ॥४३॥ 15 लोकना अग्रभागमां पहोंचेला सर्व सिद्धोने नमस्कार करता अरिहंत भगवंतोने नमस्कार थाओ॥४४॥ समग्र प्रकारना सावध पापयोगोनां पच्चक्खाण करता अरिहंत भगवंतोने नमस्कार थाओ // 45 // ज्ञान, दर्शन अने चारित्र स्वरूप रत्ननी मालाथी अलंकृत अरिहंत भगवंतोने नमस्कार थाओ॥४६॥ निर्मळ विपुलमति मनःपर्यवज्ञान जेमने उत्पन्न थयुं छे एवा अरिहंत भगवंतोने नमस्कार थाओ॥४७॥ 20 (पांच) समिति अने (त्रण) गुप्ति रूप गुणरत्नथी अलंकृत अरिहंत भगवंतोने नमस्कार थाओ॥४८॥ दश प्रकारना श्रमणधर्मने सुंदर रीते धारण करनारा अरिहंत भगवंतोमे नमस्कार थाओ॥४९॥ पुष्कर-पद्मना पत्रती माफक नहीं लेपायेला एवा अरिहंत भगवंतोने नमस्कार थाओ // 50 // . जीवनी जेम अप्रतिहत (अस्खलित) श्रेष्ठ एवा विहार करनारा अरिहंत भगवंतोने नमस्कार थाओ / / 51 // 25 आकाशनी जेम निरालंबनता गुणथी शोभता अरिहंत भगवंतोने नमस्कार थाओ // 52 // अस्खलित एवा वायुना समूहनी जेम अप्रतिबद्ध एवा अरिहंत भगवंतोने नमस्कार थाओ // 53 // संगोपित छे अंग अने उपांग जेनां एवा काचबानी माफक गुप्त इन्द्रियोवाळा अरिहंत भगवंतोने नमस्कार थाओ // 54 // 1. गणु व्व AI 2. पुक्खपत्तं व निरुवलेवे, जीवे इव अप्पडिहयगई, गगणमिव निरालंबणे, वाउब्व अपडिबद्धे, कुम्भो इव गुत्तिदिए, विहग इव विप्पमुक्के, खग्गिविसाणं व एगजाए, भारंडपक्खीव अप्पमत्ते, वसहो इव जायथामे, कुंजरो इव सोंडीरे, सीहो इव दुद्धरिसे, सागरो इव गंभीरे, चंदो इव सोमलेसे, सूरो इव दित्ततेए, वसुंधरा इव सव्वफासविसहे सारयसलिलं व सुद्धहियए....... -श्री कल्पसूत्र, व्याख्यान 6.
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy