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________________ 177 विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / तिरयणतिसूलधारिय मोहंधासुरकबंधविंदहरा / सिद्धसयलप्परूवा अरहंता दुण्णयकयंता // 25 // 'णमो सिद्धाणं' सिद्धाः निष्ठिताः कृतकृत्याः सिद्धसाध्याः नष्टाष्टकर्माणः / सिद्धानामर्हतां च को भेद इति चेन्न, नष्टाष्टकर्माणः सिद्धाः नष्टघातिकर्माणोऽर्हन्त इति तयोर्भेदः / नष्टेषु घातिकर्मखाविभूताशेषात्मगुणत्वान्न गुणकृतस्तयोर्भेद इति चेन्न, अघातिकर्मोदयसत्त्वोपलम्भात् / तानि शुक्ल- 5 ध्यानाग्निनाऽर्धदग्धत्वात् सन्त्यपि न स्वकार्यकर्तृणीति चेन्न, पिण्डनिपाताभावान्यथानुपपत्तितः आयुविषय करवारूप त्रण नेत्रोथी सकल पदार्थोनो सार जोई लीधो छे, जेमणे त्रिपुर अर्थात् मोह, राग अने द्वेषने सारी रीते भस्म करी नाख्यां छे, जे मुनिव्रत अर्थात् दिगंबर अथवा मुनिओना पति अर्थात् ईश्वर छे, जेमणे सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्चारित्र-आ त्रण रत्नरूपी त्रिशूलने धारण करीने मोहरूपी अंधकासुरना कबंधवृंदने हरण कर्यु छे, जेमणे संपूर्ण आत्मस्वरूपने प्राप्त करी 10 लीधुं छे, अने जेमणे दुर्नयनो अंत आण्यो छे एवा अरिहंत परमेष्ठी होय छे / 23,24,25 / विशेषार्थ-शैवमतमां महादेवने कामदेवनो नाश करनार, पोताना त्रण नेत्रोथी सकल पदार्थना सारने जाणनार, त्रिपुरनो ध्वंस करनार, मुनिव्रती एटले दिगंबर, त्रिशूलने धारण करनार अने अंधकासुरना कबंधवृंदने हरण करनार मानवामां आवे छे / महादेवनां आ विशेषणोने ध्यानमां राखीने ऊपरनी बे गाथाओनी रचना थयेली छे, जेथी ए प्रगट थाय छे के अरिहंत परमेष्ठी ज 15 साचा महादेव छ। णमो सिद्धाणं' अर्थात् सिद्धोने नमस्कार थाओ। जे निष्ठित अर्थात् पूर्णतः पोताना स्वरूपमा स्थित छे, कृतकृत्य छे, जेमणे पोतानुं साध्य सिद्ध करी लीधुं छे अने जेमनां ज्ञानावरण आदि आठ कर्मो नष्ट थई चूक्यां छे तेने 'सिद्ध' कहे छे।। शंका-सिद्ध सने अरिहंतोमा शो भेद छे ? समाधान-आठ कर्मोने नष्ट करनारा सिद्ध कहेवाय छे अने चार घाती कर्मोनो नाश करनार अरिहंत कहेवाय छे / ए बेमां आ ज भेद छ / शंका–चार घाती कर्मो नष्ट थई जतां अरिहंतोना आत्माना समस्त गुणो प्रगट थई जाय छे / एटला माटे सिद्ध अने अरिहंत परमेष्ठीमां गुणकृत भेद नथी होता ? ___ समाधान-एम नथी। केमके, अरिहंतना अघाती कर्मोनो उदय अने सत्त्व बने देखाय छे। 35. आथी आ बंने परमेष्ठीओमां गुणकृत भेद पण छे / . शंका-ते अघाती कर्मो शुक्ल ध्यानरूप अग्निद्वारा अर्धदग्ध जेवां थई जवाथी उदय अने सत्त्वरूप विद्यमान रहेवा छतां पोतानुं कार्य करवामां समर्थ नथी ? समाधान-एवं पण नथी / केमके, शरीरना पतननो अभाव अन्यथा सिद्ध थतो नथी। एटला माटे अरिहंतोनुं आयुष्य वगेरे बाकीनां कर्मोनो उदय अने सत्त्वनी सिद्धि थई जाय छे / 30 अर्थात् जो आयुष्य वगेरे कर्मों पोतानां कार्यमां असमर्थ मानवामां आवे तो शरीरनुं पतन थई जq जोईएं, परंतु शरीरनु पतन तो थतुं नथी। एटला माटे आयुष्य आदि बाकीनां कर्मोनुं कार्य करवू ए सिद्ध छ। .23 20
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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