SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 10 176 षट्खण्डागमस्य संदर्भः। [प्राकृत रहस्याभावाद् वा अरिहन्ता / रहस्यमन्तरायः तस्य शेषघातित्रितयविनाशाविनाभाविनो भ्रष्टबीजवन्निःशक्तीकृताघातिकर्मणो हननादरिहन्ता / अतिशयपूजाहत्वाद् वाऽर्हन्तः / स्वर्गावतरणजन्माभिषेकपरिनिष्क्रमणकेवलज्ञानोत्पत्तिपरिनिर्वाणेषु देवकृतानां पूजानां देवासुरमानवप्राप्तपूजाभ्योऽधिकत्वादतिशयानामहत्वाद् योग्यत्वादहन्तः / 5 आविर्भूतानन्तज्ञान-दर्शन-सुख-वीर्य-विरति-क्षायिकसम्यक्त्वदान-लाभ-भोगोपभोगाद्यनन्तगुणत्वादिहैवात्मसात्कृतसिद्धस्वरूपाः स्फटिकमणिमहीधरगर्भोद्भूतादित्यबिम्बवद् देदीप्यमानाः स्वशरीरपरिमाणा अपि ज्ञानेन व्याप्त विश्वरूपाः स्वस्थिताशेषप्रमेयत्वतः प्राप्त विश्वरूपाः निर्गताशेषामयत्वतो निरामयाः विगताशेषपापाञ्जनपुञ्जत्वेन निरञ्जनाः दोषकलातीतत्वतो निष्कलाः / तेभ्योर्हढ्यो नमः, इति यावत् / णिद्दद्धमोहतरुणो वित्थिण्णाणाणसायरुत्तिण्णा / णिहयणियविग्धवम्गा बहुबाहविणिग्गया अयला // 23 // दलियमयणप्पयावा तिकालविसएहि तीहि णयणेहि / दिट्ठसयलट्ठसारा सुदद्धतिउरा मुणिव्वइणो // 24 // अथवा 'रहस्य'ना अभावथी पण अरिहंत संज्ञा प्राप्त थाय छे / रहस्य एटले अंतराय कर्म / 15 अंतरायकर्मनो नाश बाकीनां त्रण घाती कर्मोना नाशनो अविनाभावी छे, अने अंतरायकर्मनो नाश थतां अघाती कर्मो भ्रष्ट बीजनी मादक शक्तिहीन बनी जाय छे / एवा अंतराय कर्मना नाशथी अरिहंत संज्ञा प्राप्त थाय छ। _____ अथवा सातिशय पूजाने योग्य होवाथी अर्हन् संज्ञा प्राप्त थाय छे / केमके; गर्भ, जन्म, दीक्षा, केवल अने निर्वाण-आ पांच कल्याणकोमां देवोए करेली पूजाओ देव, असुर अने 20 मनुष्योने प्राप्त थयेली पूजाओथी अधिक अर्थात् महान छ। आथी अतिशयोने योग्य होवाथी अर्हन् संज्ञा समजवी जोईए। अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंत सुख, अनंत वीर्य, अनंत विरति, क्षायिक सम्यकत्व, क्षायिक दान, क्षायिक लाभ. क्षायिक भोग. अने क्षायिक उपभोग आदि प्रगट थतां अनंत गुण खरूप होवाथी जेमणे अहीं सिद्धस्वरूप प्राप्त करी लीधुं छे, स्फटिक मणिना पर्वतनी वच्चेथी 25 नीकळता सूर्यबिंब समान जे देदीप्यमान थई रह्यां छे, पोताना शरीर प्रमाण होवा छताये जेमणे पोताना ज्ञान द्वारा संपूर्ण विश्वने व्याप्त करी लीधुं छे, पोताना (ज्ञान )मां ज संपूर्ण प्रमेय रहेवाना कारणे (प्रतिभासित होवाथी ) जे विश्वरूपताने प्राप्त करी गया छे; संपूर्ण आमय अर्थात् रोगो दूर थई जवाथी जे निरामय छे, संपूर्ण पापरूपी अंजननो समूह नष्ट थई जवाथी जे निरंजन छे, अने दोषोनी कलाओ अर्थात् संपूर्ण दोषोथी रहित होवाना कारणे जे निष्कल छे एवा ए 30 अरिहंतोने नमस्कार थाओ। - जेमणे मोहरूपी वृक्षने बाळी नाख्युं छे, जे विस्तीर्ण अज्ञानरूपी समुद्रमांथी तरी गया छे, जेमणे पोताना विनोनो समूह नाश करी नाख्यो छे, जे अनेक प्रकारनी बाधाओथी रहित छे, जे अचल छे, जेमणे कामदेवना प्रतापने दलित करी नाख्यो छे, जेमणे त्रण काळने
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy