________________ विभाग) नमस्कार स्वाध्याय / निमित्तत्वादरिर्मोहः / तथा च शेषकर्मव्यापारो वैफल्यमुपेयादिति चेन्न, शेषकर्मणां मोहतत्रत्वात् / न हि मोहमन्तरेण शेषकर्माणि स्वकार्यनिष्पत्तौ व्यापृतान्युपलभ्यन्ते येन तेषां स्वातव्यं जायेत / मोहे विनष्टेऽपि कियन्तमपि कालं शेषकर्मणां सत्त्योपलम्भान्न तेषां तत्तत्रत्वमिति चेन्न, विनष्टेऽरौ जन्ममरणप्रबन्धलक्षणसंसारोत्पादनसामर्थ्यमन्तरेण तत्सत्त्वस्यासत्त्वसमानत्वात् केवलज्ञानाद्यशेषशेषात्मगुणाविर्भावप्रतिबन्धनप्रत्ययसमर्थत्वाच्च / तस्यारेहननादरिहन्ता। . रजोहननाद् वा अरिहन्ता। ज्ञानहगावरणानि रजांसीव बहिरङ्गान्तरङ्गाशेषत्रिकालगोचरानन्तार्थव्यञ्जनपरिणामात्मकवस्तुविषयबोधानुभवप्रतिबन्धकत्वाद् रजांसि / मोहोऽपि रजः भस्मरजसा पूरिताननानामिव भूयो मोहावरुद्धात्मनां जिह्मभावोपलम्भात् / किमिति त्रितयस्यैव विनाश उपदिश्यत इति चेन्न, एतद्विनाशस्य शेषकर्मविनाशाविनाभावित्वात् / तेषां हननादरिहन्ता / तिर्यंच, कुमानुष, अने प्रेत-आ पर्यायोमां निवास करवाथी थनारां समस्त दुःखोनी प्राप्तिनुं निमित्त 10 कारण होवाथी मोहने 'अरि' अर्थात् शत्रु कह्यो छे / शंका-केवळ मोहने ज अरि मानी लेतां बाकीनां कर्मोनो व्यापार निष्फळ बनी जाय छे / समाधान–एम नथी / केमके, बाकीनां समस्त कर्मो मोहने ज आधीन छ / मोह विना बधां कर्मो पोतपोतानां कार्योनी उत्पत्तिमा व्यापार करतां जोवातां नथी, जेनाथी ते पण पोतानां कार्योमां स्वतंत्र समजी शकाय / आथी साचो अरि मोह ज छे अने बाकीनां कर्मो तेने आधीन छ / 15 :शंका-मोह नष्ट थई जवा छतां केटलाये काळ सुधी बाकीनां कर्मोनी सत्ता रहे छे एटला माटे तेने-मोहने आधीन मानवु उचित नथी। समाधान—एम समजवू न जोईए / केमके, मोहरूपी शत्रु नष्ट थई जातां जन्म, मरणनी परंपरारूप संसारना उत्पादननुं सामर्थ्य बाकीनां कर्मोनुं न रहेवाथी ए कर्मोनुं सत्त्व, असत्त्व, समुं बनी जाय छे। तथा केवलज्ञान आदि संपूर्ण आत्मगुणोनो आविर्भाव रोकवामां समर्थ कारण होवाथी पण मोह ए प्रधान शत्रु छे, अने ए शत्रुनो नाश करवाथी 'अरिहंत' एवी संज्ञा प्राप्त थाय छे। ___अथवा रज अर्थात् आवरण कर्म तेनो नाश करवाथी 'अरिहंत' ए संज्ञा प्राप्त थाय छे।। ज्ञानावरण अने दर्शनावरण कर्म धूलनी जेम बाह्य अने अंतरंग त्रिकालना विषयभूत अनंत अर्थपर्याय अने व्यंजनपर्याय स्वरूप वस्तुओना विषय करनारा बोध अने अनुभवना प्रतिबंधक होवाथी 25 रज कहेवाय छे, मोहने पण रज कहे छ। केमके, जे प्रकारे जे मुख भस्मथी व्याप्त होय तेमां जिह्मभाव अर्थात् कार्यनी मंदता जोवामां आवे छे। एज प्रकारे मोहथी जेनो आत्मा व्याप्त थई रह्यो छे तेनो पण जिह्मभाव जोवामां आवे छे; अर्थात् तेनी खानुभूतिमां कालुष्य, मंदता, अथवा कुटिलता जोवामां आवे छे। - शंका-अहीं केवळ त्रण ज अर्थात् मोहनीय, ज्ञानावरण अने दर्शनावरण कर्मना विना-30 शनो ज उपदेश केम करवामां आव्यो छे ? / ___समाधान-एम समजबुं न जोईए। केमके, बाकीनां बधां कर्मोनो विनाश आ त्रण कर्मोना विनाशनो अविनाभावी छ अर्थात् आ त्रण कर्मोनो नाश थई जतां बाकीनां कर्मोनो नाश अवश्यंभावी छ / आ प्रकारे एनो नाश करवाथी अरिहंत संज्ञा प्राप्त थाय छे / 20