________________ 174 षट्खण्डागमस्य संदर्भः। [प्राकृत सुत्तस्सादीए णिबद्ध-'णमो अरिहंताणं' इच्चादिदेवदाणमोकारदसणादो। सुत्तं किं मंगलमुद अमंगलमिदि ? जदि ण मंगलं, ण तं सुत्तं पावकारणस्स सुत्तत्तविरोहादो। अह मंगलं, किं तत्थ मंगलेण एगदो चेय कन्जणिप्पत्तीदो इदि / ण ताव सुत्तं ण मंगलमिदि ? तारिसपइज्जाभावादो परिसेसादो मंगलं स / सुत्तस्सादीए मंगलं पढिजदि, ण पुव्वुत्तदोसो वि 5 दोण्हं पि पुध पुध विणासिज्जमाणपावदसणादो। पढणविग्यविदावणं मंगलं / सुत्तं पुण समयं पडि असंखेजगुणसेढीए पावं गालिय पच्छा सव्वकम्मक्खयकारणमिदि / देवतानमस्कारोऽपि चरमावस्थायां कृत्स्नकर्मक्षयकारीति द्वयोरप्येककार्यकर्तृत्वमिति चेन्न, सूत्रविषयपरिज्ञानमन्तरेण तस्य तथाविधसामर्थ्याभावात् / शुक्लध्यानान्मोक्षः, न च देवतानमस्कारः शुक्लध्यानमिति / इदाणिं देवदाणमोकारसुत्तस्सत्थो उच्चदे10 णमो अरिहंताणं' अरिहननादरिहन्ता / नरक-तिर्यक्-कुमानुष्यप्रेतावासगताशेषदुःखप्राप्तिप्रथम खंडागम निबद्ध मंगल छे। केमके, 'इमेसिं चोदसण्हं जीवसमासाणं' इत्यादि जीवस्थानना आ सूत्रनी पहेला 'णमो अरिहंताणं' इत्यादिरूपे देवतानमस्कार निबद्धरूपे जोवामां आवे छे / शंका-सूत्रग्रंथ स्वयं मंगलरूप छे अथवा अमंगलरूप ? जो सूत्र स्वयं मंगलरूप नथी तो तेने सूत्र पण कही शकातुं नथी / केमके, मंगलना अभावमा पापर्नु कारण होवाथी तेनो सूत्रपणानी साथे 15 विरोध आवी पडे छे, अने जो सूत्र स्वयं मंगलरूप छे तो पछी तेमां अलगरूपे मंगल करवानी शी जरूरत छ ? केमके, मंगलरूप एकसूत्र ग्रंथथी ज कार्यनी निष्पत्ति थई जाय छे अने जो एम कहेवामां आवे के, आ सूत्र नथी अने तेथी ए मंगल पण नथी तो एवं तो क्यांय कहेवामां आव्युं नथी के, आ सूत्र नथी। आथी आ सूत्र छे अने परिशेषन्यायथी मंगल पण छे, तो पछी आमां अलगरूपे मंगल शा माटे करवामां आव्युं ? 20 समाधान—सूत्रनी आदिमां मंगल करवामां आव्युं छे, तो पण पूर्वोक्त दोष आवतो नथी। केमके, सूत्र अने मंगल-आ बंनेथी पृथक् पृथक् रूपमां पापोनो विनाश थतो जोवामां आवे छ / निबद्ध अने अनिबद्ध मंगल पठनमा आवनारां विघ्नोने दूर करे छे अने सूत्र प्रतिसमय असंख्यात गुणित-श्रेणीरूपे पापोनो नाश करीने ए पछी संपूर्ण कर्मोना क्षयर्नु कारण बने छ। शंका-देवता नमस्कार पण अंतिम अवस्थामां संपूर्ण कर्मोनो क्षय करनारो थाय छे, 28 एटला माटे मंगल अने सूत्र ए बनेय एक कार्यने करनारां छे, तो पछी बनेनां कार्य भिन्न भिन्न केम बनाववामां आव्यां छे ? समाधान-एम नथी / केमके, सूत्रकथित विषयना परिज्ञान विना केवळ देवतानमस्कारमा कर्मक्षयर्नु सामर्थ्य नथी। मोक्षनी प्राप्ति शुक्लध्यानथी थाय छे परंतु देवतानमस्कार तो शुक्लध्यान नथी। 30 विशेषार्थ-शास्त्रज्ञान शुक्लध्यान- साक्षात् कारण छे अने देवतानमस्कार परंपरा कारण छे एटला माटे बनेनां अलग अलग कार्य बताववामां आव्यां छे / ___ हवे देवता-नमस्कार सूत्रनो अर्थ कहे छे / 'णमो अरिहंताणं' अरिहंतोने नमस्कार थाओ। अरि एटले शत्रुओना हननात् अर्थात् नाश करवाथी 'अरिहंत' एवी संज्ञा प्राप्त थाय छे / नरक,