________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / 173 तिसु हाणेसु मंगलं किमढे वुच्चदे ? कयकोउयमंगलपायच्छित्ता विणयोवगया सिस्सा अझेदारो सोदारो वत्तारो आरोग्गमविग्घेण विजं विजाफलं पातु त्ति / उत्तं च आदिम्हि भद्दवयणं सिस्सा लहुपारया हवंतु त्ति / मज्झे अव्वोच्छित्ति य विजा विजाफलं चरिमे // 20 // विघ्नाः प्रणश्यन्ति भयं न जातु, न दुष्टदेवाः परिलज्जयन्ति / अर्थान्यथेष्टांश्च सदा लभन्ते, जिनोत्तमानां परिकीर्तनेन // 21 // आदौ मध्यावसाने च, मङ्गलं भाषितं बुधैः / तजिनेन्द्रगुणस्तोत्रं, तदविघ्नप्रसिद्धये // 22 // तच्च मंगलं दुविहं णिबद्धमणिबद्धमिदि / तत्थ णिबद्धं णाम, जो सुत्तस्सादीए सुत्तकत्तारेण णिबद्धदेवदाणमोकारो तं णिबद्धमंगलं / जो सुत्तस्सादीए सुत्तकत्तारेण कयदेवदाणमोकारो तमणि-10 बद्धमंगलं / इदं पुण जीवट्ठाणं णिबद्धमंगलं / यत्तो 'इमेसिं चोदसण्हं जीवसमासाणं' इदि एदस्स शंका-ग्रंथनी आदिमां, मध्यमां अने अंतमां आम त्रण स्थानोमां मंगल करवानो उपदेश शा माटे को छ ? समाधान-मंगल संबंधी आवश्यक कृतिकर्म करनारा तथा मंगल संबंधी प्रायश्चित्त करनारा अर्थात् मंगलने माटे आगळ प्रारंभ करवामां आवनार कार्यमां दुःस्वप्न वगेरेथी मनमां 15 चंचळता वगेरे न थाय एटला माटे प्रायश्चित्तस्वरूप मंगलीक दधि, अक्षत, चंदन वगेरेने सामे राखनारा अने विनयने प्राप्त एवा शिष्य, अध्येता अर्थात् भणनारो, श्रोता, अने वक्ता आरोग्य अने निर्विघ्नरूपे विद्या तथा विद्यानां फळोने प्राप्त करे, एटला माटे त्रणे स्थळे मंगल करवानो उपदेश आपेलो छ / कयुं पण छे के शिष्ये सरळतापूर्वक प्रारंभ करेला ग्रंथना अध्ययन आदि कार्यमां ते पारंगत थाय एटला 20 माटे आदिमां भद्रवचन एटले मंगलाचरण कर जोईए / प्रारंभ करेला कार्यमां विक्षेप न थाय एटला माटे मध्यमा मंगलाचरण करवू जोईए, अने विद्या तथा विद्याना फळनी प्राप्ति थाय ए माटे अंतमा मंगलाचरण करवू जोईए / 20 / जिनेन्द्रदेवना गुणोनु कीर्तन करवाथी विघ्नो नाश पामे छे, क्यारे पण भय आवतो नथी, दुष्ट देवताओ आक्रमण करी शकता नथी, अने निरंतर यथेष्ट पदार्थोनी प्राप्ति थाय छ। 21 / 25 विद्वान पुरुषोए प्रारंभ करेला कोई पण कार्यनी आदि, मध्य अने अंतमां मंगल करवानुं विधान करेलु छ / ते मंगल निर्विघ्ने कार्यसिद्धिने माटे होय छे अने ते जिनेन्द्र भगवानना गुणोनुं कीर्तन करवू ए ज (मंगल) छे / 22 / / ते मंगल बे प्रकारे छ। निबद्ध मंगल अने अनिबद्ध मंगल / जे ग्रंथनी आदिमां ग्रंथकार द्वारा इष्ट देवताने नमस्कार निबद्ध करवामां आवे छे अर्थात् श्लोक वगेरे रूपे रचाय छे तेने 'निबद्ध 30 मंगल' कहे छ; अने जे ग्रंथकार द्वारा देवताने नमस्कार करवामां आवे छे (परंतु श्लोक वगेरे द्वारा संग्रह करवामां आवतुं नथी) तेने 'अनिबद्ध मंगल' कहे छे। तेमांथी आ 'जीवस्थान' नामनो