________________ 272 षट्खण्डागमस्य संदर्भः। [प्राकृत सिद्धस्वरूपापेक्षया नैगमनयेन साद्यपर्यवसितं मङ्गलम् / सादिसपर्यवसितं सम्यग्दर्शनापेक्षया जघन्येनान्तर्मुहूर्तकालमुत्कर्षेण षट्षष्टिसागराः देशोनाः। ___ कतिविधं मङ्गलम् ? मङ्गलसामान्यात् तदेकविधम् , मुख्यामुख्यभेदतो द्विविधम् , सम्यग्ज्ञान-दर्शन-चारित्रभेदात् त्रिविधं मङ्गलम् , धर्मसिद्धसाध्वहंद्रेदाच्चतुर्विधम् , ज्ञान-दर्शन-त्रिगुप्ति5 भेदात् पञ्चविधम् / 'णमो जिणाणं' इत्यादिनाऽनेकविधं वा। अथवा मंगलम्हि छ अहियाराए दंडा वत्तव्वा भवंति / तं जहा, मंगलं मंगलकत्ता मंगलकरणीयं मंगलोवायो मंगलविहाणं मंगलफलमिदि / एदेसि छण्हं पि अत्यो उच्चदे / मंगलत्थो पुव्वुत्तो। मंगलकत्ता चोहसविजाह्राणपारओ आइरियो / मंगलकरणीयं भव्वजणो। मंगलोवायो तिरयणसाह___णाणि / मंगलविहाणं एयविहादि पुन्वुत्तं / मंगलफलं देहिंतो कय - अब्भुदयणिस्सेयससुहाइत्तं / 10 मंगलं सुत्तस्स आदीए मज्झे अवसाणे च वत्तव्वं / उत्तं च __ आदीवसाण-मज्झे, पण्णत्तं मंगलं जिणिंदेहिं / तो कयमंगलविणयो वि णमोसुत्तं पवक्खामि // 19 // विशेषार्थ-रत्नत्रयनी प्राप्तिथी सादिपणुं अने रत्नत्रयनी प्राप्ति पछी सिद्ध स्वरूपनी जे प्राप्ति थई छे तेनो कदी अंत आवनार नथी। आ रीते आ बंने धर्मोने ज विषय करनार (न एकं 15 गमः नैगमः) नैगमनयनी अपेक्षाए मंगल सादि-अनंत छे। . (छट्ठो अनुयोग-) ___ सम्यग्दर्शननी अपेक्षाए मंगल सादि-सांत समजवु जोईए, तेनो जघन्य काळ अंतर्मुहूर्तनो छे अने उत्कृष्ट काळ कंईक ऊणा छासठ सागरोपम प्रमाण छ / ___मंगल केटला प्रकारनां छे ? मंगलसामान्यनी अपेक्षाए मंगल एक प्रकारे छ / मुख्य अने 20 गौण भेदथी बे प्रकारे छ। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्चारित्रना भेदथी त्रण प्रकारे छे / धर्म, सिद्ध, साधु अने अर्हन्तना भेदथी चार प्रकारे छे। ज्ञान, दर्शन अने त्रण गुप्तिना भेदथी पांच प्रकारे छ, अथवा 'जिनेन्द्रदेवने नमस्कार थाओं' इत्यादि रूपथी अनेक प्रकारे छ। अथवा मंगलना विषयमा छ अधिकारो द्वारा दंडकोनुं कथन कवु जोईए / ते आ प्रकारे छे:-१ मंगल, 2 मंगलकर्ता, 3 मंगलकरणीय, 4 मंगल उपाय, 5 मंगलभेद अने 6 मंगलफळ / 25 हवे आ छ अधिकारोना अर्थो कहे छ। मंगलनो अर्थ तो पहेलां कही देवामां आव्यो छे / चौद विद्यास्थानोना पारगामी आचार्य परमेष्ठी मंगलकर्ता छ। भव्यजन मंगल करवाने योग्य छ / रत्नत्रयनी साधक सामग्री मंगलनो उपाय छे। एक प्रकारनुं मंगल, बे प्रकारचें मंगल इत्यादिरूपे मंगलना भेदो पहेलां कही आव्या छीए / उपर कहेला मंगल आदिथी प्राप्त थनारा अभ्युदय अने मोक्ष सुखने आधीन मंगलनुं फळ छ / अर्थात् जेटला प्रमाणमां आ जीव मंगलनुं साधन मेळवे 30 छे, एटला ज प्रमाणमां तेनाथी जे यथायोग्य अभ्युदय अने निःश्रेयस् सुख मळे छे ते ज तेना मंगलनुं फळ छ / उक्त मंगल ग्रंथनी आदि, मध्य अने अंतमां कहेवां जोईए / कयुं पण छे जिनेन्द्रदेवे आदि, मध्य अने अंतमा मंगल करवातुं विधान कयुं छे। आथी मंगल विनयने करीने पण नमोकारसूत्रनुं वर्णन करुं छु / 19 /