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________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / 171 तौ स्त इति चेद् भवतु तद्रूपतया मङ्गलम् , न मिथ्यात्वादीनां मङ्गलम् / तन्न मिथ्यादृष्टयः सुगतिभाजः सम्यग्दर्शनमन्तरेण तज्ज्ञानस्य सम्यक्त्वाभावतस्तदभावात् / कथं पुनस्तज्ज्ञान - दर्शनयोर्मङ्गलत्वमिति चेन्न, सम्यग्दृष्टीनामवगताप्तखरूपाणां केवलज्ञान-दर्शनावयवत्वेनाध्यवसितरजोजुज्ञानदशनानामावरणविविक्तानन्तज्ञान-दर्शनशक्तिखचितात्मस्मर्तृणां वा पापक्षयकारित्वतस्तयोस्तदुपपत्तेः / नोआगमभव्यद्रव्यमङ्गलापेक्षया वा मङ्गलमनाद्यपर्यवसानमिति / रत्नत्रयमुपादायाविनष्टेनैवाप्त- 5 शंकाआवरणथी युक्त जीवोनां ज्ञान अने दर्शन मंगलभूत केवलज्ञान अने केवलदर्शनना अवयवो ज नथी थई शकता? ___समाधान–एम कहेवू ठीक नथी / केमके, केवलज्ञान अने केवलदर्शनथी भिन्न ज्ञान अने दर्शननो सद्भाव जोवातो नथी शंका-केवलज्ञान अने केवलदर्शनथी अतिरिक्त मतिज्ञान आदि ज्ञानो अने चक्षुदर्शन 10 वगेरे दर्शनो तो जोवाय छे / तेनो अभाव कयी रीते करी शकाय ? समाधान-ए ज्ञान अने दर्शन संबंधी अवस्थाओनी मतिज्ञान आदि अने चक्षुदर्शन आदि भिन्न भिन्न संज्ञाओछे; अर्थात् ज्ञानगुणनी अवस्थाविशेषतुं नाम मति आदि अने दर्शनगुणनी अवस्थाविशेषतुं नाम चक्षुदर्शन आदि छ। यथार्थमां आ बधी अवस्थाओमां रहेनारां ज्ञान अने दर्शन एक ज छ / शंका-केवलज्ञान अने केवलदर्शनना अंकुररूप छद्मस्थोना ज्ञान अने दर्शनने मंगलरूप 15 मानी लेतां मिथ्यादृष्टि जीव पण मंगल संज्ञाने प्राप्त थाय छे / केमके, मिथ्यादृष्टि जीवमां पण ते अंकुर विद्यमान छ। समाधान—जो एम होय तो, भले मिथ्यादृष्टि जीवने ज्ञान अने दर्शनरूपे मंगलपणुं प्राप्त थाय, परंतु एटला मात्रथी मिथ्यात्व, अविरति आदिने मंगलपणुं प्राप्त थई न शके, अने तेथी मिथ्यादृष्टि जीव सुगतिने प्राप्त थई शकतो नथी / केमके, सम्यग्दर्शन विना मिथ्यादृष्टिओना 20 ."झानमा समीचीनता आवी शकती नथी, अने समीचीनता विना तेने सुगति मळी शकती नथी। शंका-त्यारे मिथ्यादृष्टिओना ज्ञान अने दर्शनने मंगलपणुं केवी रीते छे ? समाधान—एवी शंका करवी न जोईए / केमके, आप्तना स्वरूपने जाणनारो, छद्मस्थोना ज्ञान अने दर्शनने केवलज्ञान अने केवलदर्शनना अवयवरूपे निश्चय करनारो अने आवरणरहित अनंतज्ञान अने अनंतदर्शनरूप शक्तिथी युक्त आत्मानुं स्मरण करनारा सम्यग्दृष्टिओना ज्ञान अने 25 दर्शनमा जे प्रकारे पापनुं क्षयकारीपणुं जोवाय छे ए प्रकारे मिथ्यादृष्टिओना ज्ञान अने दर्शनमां पण पापर्नु क्षयकारीपणुं जोवाय छे। एटला माटे मिथ्यादृष्टिओना ज्ञान अने दर्शनने पण मंगल मानवामां विरोध नथी, अथवा नोआगम भावि द्रव्य मंगलनी अपेक्षाए मंगल अनादि-अनंत छ / विशेषार्थ-जे आत्मा वर्तमानमा मंगलपर्यायथी युक्त तो नथी, परंतु भविष्यमां मंगलपर्यायथी युक्त थशे, तेनी शक्तिनी अपेक्षाथी मंगलपणुं अनादि-अनंतरूप बनी जाय छे। 30 - रत्नत्रयने धारण करीने कदापि नष्ट नहि थनारा रत्नत्रय द्वारा ज प्राप्त थयेला सिद्धना स्वरूपनी अपेक्षाए नैगमनयथी मंगल सादि-अनंत छ /
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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