________________ 10 षट्खण्डागमस्य संदर्भः। [प्राकृत किं कस्स केण कत्थ व केवचिरं कदिविधो य भावो त्ति। छहि अणिओग - हारेहि सव्वे भावाणुगंतव्वा // 18 // इदि वयणादो। कि मङ्गलम् ? जीवो मङ्गलम् / न सर्वजीवानां मङ्गलप्राप्तिः द्रव्यार्थिकनयापेक्षया मङ्गलपर्यायपरिणतजीवस्य पर्यायार्थिकनयापेक्षया केवलज्ञानादिपर्यायाणां च मङ्गलत्वाभ्युपगमात् / 5 कस्य मङ्गलम् ? द्रव्यार्थिकनयार्पणया नित्यतामादधानस्य पर्यायार्थिकनयार्पणयोत्पादविगमात्मकस्य / देवदत्तात् कम्बलस्येव न जीवान्मङ्गलपर्यायस्य भेदः सुवर्णस्याङ्गुलीयकमित्यत्राभेदेऽपि षष्ठथुपलम्भतोऽनेकान्तात् / __ केन मङ्गलम् ? औदयिकादिभावैः / उत्पन्न करवा माटे मंगल शब्दनी निरुक्ति कहेवामां आवी छ / हवे मंगलनो अनुयोग-व्याख्या कहे छ; अर्थात् अनुयोगद्वारा मंगलनुं निरूपण करे छ / विशेषार्थ-(१) जिनेद्र कथित आगमनो पूर्वापर संदर्भ मेळवतां अनुकूळ व्याख्यान करवू तेने 'अनुयोग' कहे छ / अथवा, (2) सूत्रनो तेना वाच्यरूप विषयनी साथे संबंध जोडवो तेने 'अनुयोग' कहे छे / अथवा, (3) एक ज भगवत्प्रोक्त सूत्रना अनन्त अर्थो थाय छे, एटला माटे सूत्रनी 'अणु' संज्ञा छे, ए सूक्ष्मरूप सूत्रना अर्थरूप विस्तारनी साथेनो संबंध प्रतिपादन 15 करवो तेने 'अनुयोग' कहे छ / (1) पदार्थ शुं छे ? (2) कोनो छे ? (3) कोनी द्वारा थाय छे ? (4) क्यां आगळ थाय छे, (5) केटला समय सुधी रहे छे ? अने (6) केटला प्रकारे छे ? आ प्रकारे आ छ अनुयोगद्वारोथी संपूर्ण पदार्थनुं ज्ञान करवू जोईए। 18. आ वचनथी अनुयोगद्वारा मंगलनुं निरूपण करवामां आवे छे / 20 (पहेलो अनुयोग-) मंगल शुं छे ? जीव ज मंगल छे, परंतु जीवने मंगल कहेवाथी बधा जीवो मंगलरूप नहि थई जाय / केमके, द्रव्यार्थिक नयनी अपेक्षाए मंगल पर्यायथी परिणत जीवने अर्थात् मंगल करता जीवने, अने पर्यायार्थिक नयनी अपेक्षाए केवळज्ञान आदि पर्यायोने मंगल मान्या छ। (बीजो अनुयोग-) 28 मंगल कोने थाय छे ? द्रव्यार्थिक नयनी अपेक्षाए नित्यताने धारण करनार अर्थात् सदाकाळ एकस्वरूप रहेनारा अने पर्यायार्थिक नयनी अपेक्षाए उत्पाद अने व्ययस्वरूप जीवने मंगल थाय छे / अहीं जे प्रकारे ( कंबल देवदत्तनी होवा छतां) देवदत्तथी कंबलनो भेद छे, ए ज प्रकारे जीवनो मंगलरूप पर्यायथी भेद नथी / केमके, 'आ वींटी सुवर्णनी छे' अहीं अभेदमां वींटीरूप पर्याय सुवर्णथी अभिन्न होवा छताये जे प्रकारे भेदद्योतक षष्ठी विभक्ति जोवाय छे ए ज 30 प्रकारे जीवस्य मङ्गलम् अहीं पण अभेदमां षष्ठी विभक्ति समजवी जोईए। आ रीते संबंध कारकमां अनेकांत समजवो जोईए / अर्थात् क्यांय बे पदार्थोमां भेद होवा छताये संबंधनी विवक्षाथी षष्ठी कारक होय छे अने क्यांय अभेद होवा छताये षष्ठी कारकनो प्रयोग थाय छे /