________________ 10 विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। 167 रजोमलादि बाह्यम् / घन-कठिन - जीव - प्रदेश - निबद्ध - प्रकृति - स्थित्यनुभाग- प्रदेश - विभक्त - ज्ञानावरणाद्यष्टविधकर्माभ्यन्तरद्रव्यमलम् / अज्ञानदर्शनादिपरिणामो भावमलम् / ___अथवा, अर्थाभिधान-प्रत्ययभेदात् त्रिविधं मलम् / उक्तमर्थलम् / अभिधानमलं तद्वाचकः शब्दः / तयोरुत्पन्नबुद्धिः प्रत्ययमलम् / अथवा चतुर्विधं मलं नाम - स्थापना - द्रव्य - भावमलभेदात् / अनेकविधं वा / तन्मलं गालयति विनाशति विध्वंसयतीति मङ्गलम् / अथवा मङ्गं सुखं तल्लाति 5 आदत्त इति वा मङ्गलम् / उक्तं च मङ्गशब्दोऽयमुद्दिष्टः, पुण्यार्थस्याभिधायकः / तल्लातीत्युच्यते सद्भिर्मङ्गलं मङ्गलार्थिभिः // 16 // पापं मलमिति प्रोक्तमुपचारसमाश्रयात् / तद्धि गालयतीत्युक्तं, मङ्गलं पण्डितैर्जनैः / / 17 // अथवा, मंङ्गति गच्छति कर्ता कार्यसिद्धिमनेनास्मिन् वेति मङ्गलम् / मङ्गलशब्दस्यार्थविषयनिश्चयोत्पादनार्थं निरुक्तिरुक्ता / मङ्गलस्यानुयोग उच्यतेकरे, घात करे, नाश करे, शोधन करे, विध्वंस करे तेने 'मंगल' कहे छे। द्रव्यमल अने भावमलना भेदथी ते मल बे प्रकारनो छ / द्रव्यमल पण बे प्रकारनो छे। बाह्य द्रव्यमल अने आभ्यंतर द्रव्यमल / आमांथी परसेवो, धूळ अने मेल वगेरे बाह्य द्रव्यमल छे / सांद्र अने कठण 15 स्वरूपे जीवना प्रदेशोनी साथे बंधायेलां प्रकृति, स्थिति, अनुभाग अने प्रदेश-आ भेदोमां विभक्त एवां ज्ञानावरण आदि आठ कर्मो आभ्यंतर द्रव्यमल छे / अज्ञान अने अदर्शन वगेरे परिणामोने 'भावमल' कहे छ। - अथवा अर्थ, अभिधान (शब्द) अने प्रत्यय( ज्ञान )ना भेदथी मळ त्रण प्रकारनो होय छ। अर्थमल विशे तो हमणां पहेला ज कहेवायुं छे; अर्थात् जे पहेलां बाह्य द्रव्यमल, आभ्यंतर 20 द्रव्यमल अने भावमल कहेवामां आव्या छे तेने ज अर्थमल समजवो जोईए। मलना वाचक शब्दोने अभिधान मल कहे छ; अथवा अर्थमल अने अभिधानमलमा उत्पन्न थयेली बुद्धिने प्रत्ययमल कहे छ / अथवा नाममल, स्थापनामल, द्रव्यमल अने भावमल ए भेदोथी मल चार प्रकारनो छ। अथवा आ ज प्रकारे विवक्षाभेदथी मल अनेक प्रकारनो छ / आ प्रकारे ऊपर कहेवामां आवेला (1) मलनुं गालन करे, विनाश करे अथवा ध्वंस करे तेने 'मंगल' कहे छे।। (2) अथवा मंग शब्द सुखवाची छे; तेने जे लावे, प्राप्त करे तेने 'मंगल' कहे छे. कर्दा पण छे के___(३) आ मंगशब्द पुण्यरूप अर्थ- प्रतिपादन करनारो मानवामां आव्यो छे। ए पुण्यने जे लावे छे तेने मंगळना इच्छुक सत्पुरुषो 'मंगल' कहे छ। 16 / . (4) उपचारथी पापने पण मळ कह्यो छे, एटला माटे जे एनुं गालन अर्थात् नाश करे 30 छे तेने पण पंडितपुरुषो 'मंगल' कहे छ। 17 / (5) अथवा कर्ता अर्थात् कोई उद्दिष्ट कार्यने करनारो, जेनी द्वारा अथवा जे करतां कार्यनी सिद्धिने प्राप्त थाय छे तेने पण 'मंगल' कहे छ / आ ज रीते मंगलशब्दनो अर्थविषयक निश्चय 25