SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 166 षट्खण्डागमस्य संदर्भः। [प्राकृत ___ तत्थ धाउ-णिक्खेव-णय-एयत्थ-णिरुत्ति-अणियोग-दारेहिं मंगलं परूविजदि / तत्थ धाउ 'भू सत्तायां' इच्चेवमाइओ सयलत्थ-वत्थूणं सद्दाणं मूल-कारणभूदो / तत्थ 'मगि' इदि अणेण धाउणा णिप्पण्णो मंगलसद्दो।x xxxx शब्दात् पदप्रसिद्धिः, पदसिद्धेरर्थनिर्णयो भवति / ___ अर्थात् तत्त्वज्ञानं, तत्त्वज्ञानात् परं श्रेयः // 2 // इति / णिच्छये णिण्णए खिवदि त्ति मिख्खेवो / सो वि छव्विहो, णाम-ट्ठवणा-दव्व-खेत्त-कालभावमंगलमिदि। x x x x x ___ मङ्गलस्यैकार्थ उच्यते, मङ्गलं पुण्यं पूतं पवित्रं प्रशस्तं शिवं शुभं कल्याणं भद्रं सौख्यमित्येवमादीनि मङ्गलपर्यायवचनानि / एकार्थप्ररूपणं किमिति चेत्, यतो मङ्गलार्थोऽनेकशब्दाभिधेयस्ततो10ऽनेकेषु शास्त्रेषु नैकाभिधानैः मङ्गलार्थः प्रयुक्तश्चिरन्तनाचार्यैः। सोऽव्यामोहेन शिष्यैः सुखेनावगम्यत इत्येकार्थ उच्यते 'योकशब्देन न जानाति ततोऽन्येनापि शब्देन ज्ञापयितव्यः' इति वचनाद् वा / ____ मङ्गलस्य निरुक्तिरुच्यते, मलं गालयति विनाशयति दहति हन्ति विशोधयति विध्वंसयतीति मङ्गलम् / तन्मलं द्विविधं, द्रव्य - भावमलभेदात्। द्रव्यमलं द्विविधम् , बाह्यमाभ्यन्तरं च / तत्र वेद ते उक्त मंगल आदि छ अधिकारोमांथी पहेलां धातु, निक्षेप, नय, एकार्थ, निरुक्ति अने 15 अनुयोग द्वारा 'मंगल'नी प्ररूपणा करवामां आवे छे / तेमां 'भू' धातु सत्ता अर्थमां छे, तेने प्रथम मानी लईने समस्त अर्थवाचक शब्दोनुं जे मूळ कारण छे तेने 'धातु' कहे छे। तेमांथी 'मगि धातुथी मंगल शब्द निष्पन्न थयेलो छ / अर्थात् 'मगि' धातुमां अलच् प्रत्यय जोडी देवाथी 'मंगल' शब्द बने छ। x x x x x x x . शब्दथी पदनी सिद्धि थाय छे, पदनी सिद्धिथी तेना अर्थनो निर्णय थाय छ; अर्थनिर्णयथी 20 तत्त्वज्ञान अर्थात् हेय-उपादेय विवेकनी प्राप्ति थाय छे, अने तत्त्वज्ञानथी परम कल्याण थाय छे / 2 / जे कोई एक निश्चय अथवा निर्णयमा क्षेपण करे अर्थात् अनिर्णीत वस्तुनो तेना नामादिक द्वारा निर्णय करावे, तेने 'निक्षेप' कहे छे / ते नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल अने भावनाना भेदोथी छ प्रकारे छे, अने एना संबंधथी मंगल पण छ प्रकारतुं थाय छ। 1 नाम मंगल, 2 स्थापना मंगल, 3 द्रव्य मंगल, 4 क्षेत्र मंगल, 5 काल मंगल अने 6 भाव मंगल / x x 25 हवे मंगळनां एकार्थवाची नामो कहे छे / मंगल, पुण्य, पूत, पवित्र, प्रशस्त, शिव, शुभ, कल्याण, भद्र अने सौख्य इत्यादि मंगलनां पर्यायवाचक नामो छ। __ शंका-अहीं मंगलना एकार्थवाचक अनेक नामोनुं प्ररूपण शा माटे करवामां आव्यु छ ? समाधान—केमके, मंगलरूप अर्थ अनेक शब्दनो वाच्य छे, अर्थात् अनेक पर्यायवाची नामो द्वारा मंगलरूप अर्थन प्रतिपादन करवामां आवे छे, एटला माटे प्राचीन आचार्योए अनेक 30 शास्त्रोमा अर्थात् भिन्न भिन्न शब्दो द्वारा मंगलरूप अर्थनो प्रयोग कर्यो छे। आथी शिष्योने मतिभ्रम विना मंगलना पर्यायवाची ते बधां नामोनुं सरळतापूर्वक ज्ञान थई जाय, एटला माटे अहीं मंगलनां एकार्थवाची नामो कह्यां छे। हवे मंगलनी निरुक्ति (व्युत्पत्तिजन्य अर्थ) कहे छ। जे मळनुं गालन करे, मलनो विनाश
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy