________________ [9] श्रीपुष्पदन्त-भूतबलिप्रणीतस्य श्रीवीरसेनाचार्यरचितधवलाटीकया समन्वितस्य षटखण्डागमस्य संदर्भः। [छक्खंडागमसंदब्भो] 10 णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं / णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं // 1 // कधमिदं सुत्तं मंगल-णिमित्त-हेउ-परिमाण-णाम-कत्ताराणं सकारणाणं परूवयं ? ण, तालपलंबसुत्तं व देसामासियत्तादो। विवेचन। अरिहंतोने नमस्कार थाओ, सिद्धोने नमस्कार थाओ, आचार्योने नमस्कार थाओ, उपाध्यायोने नमस्कार थाओ अने लोकमां रहेला सर्व साधुओने नमस्कार थाओ। विशेषार्थ-आ ज मंगलसूत्र 'नमोकारमंत्र' ना नामे प्रसिद्ध छे / एना अंतिम भागमा जे 'लोए' एटले 'लोकमां' अने 'सव्व' अर्थात् 'सर्व' पदो आवेलां छे, तेनो संबंध णमो अरिहंताणं आदि प्रत्येक नमस्कारपदनी साथे करी लेवो जोईए। एनो खुलासो आचार्ये स्वयं आगळ उपर कर्यो छे। - शंका-आ सूत्र मंगल, निमित्त, हेतु, परिमाण, नाम अने कर्तार्नु सकारण प्ररूपण करे छे ए कयी रीते संभवित छे ? शंकाकारनो ए अभिप्राय छे के, आ सूत्रमा ज्यारे केवळ मंगळ 15 अर्थात् इष्ट देवताने नमस्कार करवामां आव्यो छे त्यारे तेनाथी निमित्त आदि बीजा पांच अधिकारोनुं सष्टीकरण कई रीते संभवे ? समाधान-आ मंगळसूत्र 'तालप्रलम्ब' सूत्रनी समान देशामर्षक होवाथी मंगल आदि छये अधिकारोनी सकारण प्ररूपणा करे छे, आथी उपर्युक्त शंका ठीक लागती नथी। . विशेषार्थ-जे सूत्र अधिकृत विषयोना एकदेश कथनद्वारा समस्त विषयोनी सूचना करे 20 तेने 'देशामर्षक सूत्र' कहे छे, आथी 'तालप्रलंब सूत्र'नी समान आ मंगलसूत्र पण देशामर्षक छ / 'कल्पसूत्रना' 'कल्प्याकल्प्य' नामक प्रथम उद्देशना प्रथम सूत्रमा 'तालप्रलंब' पद आवे छे, जेनो भाव ए छे के, तालवृक्षने प्रथम मानी लईने जेटली पण वनस्पतिनी जातिओ छे, तेनाथी अभिन्न (तोड्या विना अथवा कापेलां) अने अपक्क अथवा काचां अर्थात् सचित्त मूल, पत्र, फळ, पुष्प वगैरे लेवा ए साधुने योग्य नथी / आ सूत्रमा तो केवल 'तालप्रलंब' पद ज आपेलं छे, तेम छतां 25 तेने उपलक्षण मानीने समस्त वृक्षजाति अने तेमनां पत्र-पुष्प वगेरेने ग्रहण करवामां आव्यां छे / 'एज प्रकारे आ नमस्कारात्मक सूत्र पण देशामर्षक होवाथी मंगलनी साथे अधिकृत निमित्त, हेतु, परिमाण, नाम अने कर्तानो पण बोध करावे छे /