________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / ____ क मङ्गलम् ? जीवे / कुण्डाद् बदराणामिव न जीवान्मङ्गलपर्यायस्य भेदः सारे स्तम्भ इत्यत्राभेदेऽपि सप्तम्युपलम्भतोऽनेकान्तात् / ___ कियच्चिरं मङ्गलम् ? नानाजीवापेक्षया सर्वोद्यम् / एकजीवापेक्षया अनाद्यपर्यवसितं साद्यपर्यवसितं सादिसपर्यवसितमिति त्रिविधम् / कथमनाद्यपर्यवसितता मङ्गलस्य ? द्रव्यार्थिकनयार्पणया / तथा च मिथ्यादृष्टयवस्थायामपि मङ्गलत्वं जीवस्य प्राप्नोतीति चेन्नैष दोषः इष्टत्वात् / न मिथ्याविरति-5 प्रमादानां मङ्गलत्वं तेषां जीवत्वाभावात् / जीवो हि मङ्गलम् , स च केवलज्ञानाद्यनन्तधर्मात्मकः / (बीजो अनुयोग-) क्या कारणथी मंगल उत्पन्न थाय छे ? जीवना औदयिक, औपशमिक आदि भावोथी मंगल उत्पन्न थाय छे। विशेषार्थ-जो के कर्मोना उपशम, क्षय अने क्षयोपशमथी सम्यग्दर्शन वगेरेनी उत्पत्ति थाय 10 छे, एटला माटे तेनाथी मंगलनी उत्पत्ति मानवी तो ठीक छे परंतु औदयिक भावथी मंगलनी उत्पत्ति बनी शकती नथी; एटला माटे अहीं 'औदयिक आदि भावोथी मंगल उत्पन्न थाय छे' ए कहे कयी रीते संभवित छे ? एनुं समाधान आ प्रकारे समजवु जोईए के, बधा औदायिक भावो मंगलनी उत्पत्तिमां कारण नथी, तेम छतां तीर्थंकर प्रकृतिना उदयथी उत्पन्न थनारो औदयिक भाव मंगलनुं कारण छे / एटला माटे एनी अपेक्षाए औदयिक भावने पण मंगलनी उत्पत्तिना कारणोमां 15 प्रहण करवामां आवेल छे। (चोथो अनुयोग-) - मंगल शेमा उत्पन्न थाय छे ? जीवमां मंगल उत्पन्न थाय छ। जे प्रकारे कुंडामा राखेलां बोरोनो कुंडाथी भेद छे तेम जीवथी मंगलपर्यायनो भेद समजवो न जोईए / केमके, सारे स्तम्भः अर्थात् वृक्षना लाकडामा स्तंभ छ / अहीं जे रीते अभेदमां पण सप्तमी विभक्तिनी उपलब्धि थाय 20 छे, ए ज प्रकारे जीवे मङ्गलम् एमां पण अभेदमां सप्तमी विभक्ति समजवी जोईए। आ रीते ए सिद्ध थयुं के, अधिकरण कारकना प्रयोगमां पण अनेकांत छ; अर्थात् क्यांय भेदमां अधिकरण कारक थाय छे अने क्यांय अभेदमां पण अधिकरण कारक होय छे / __ (पांचमो अनुयोग-) मंगल क्यां सुधी रहे छे ? विविध जीवोनी अपेक्षाए मंगल सर्वदा रहे छे अने एक 25 जीवनी अपेक्षाए अनादिअनंत, सादिअनंत, सादिसांत आ प्रकारे मंगलना त्रण भेदो थई जाय छ। शंका-मंगलमा एक जीवनी अपेक्षाए अनादि अनंतपणुं कयी रीते बने छे, अर्थात् एक जीवनुं अनादि कालथी अनंतकाळ सुधी मंगल थाय छे ए कयी रीते संभवित छे ? समाधान-द्रव्यार्थिक नयनी प्रधानताथी मंगलमां अनादि-अनंतपणुं बनी जाय छे। अर्थात् द्रव्यार्थिक नयनी मुख्यताथी जीव अनादिकाळथी अनंतकाळ सुधी सर्वदा एक स्वभावे 30 अवस्थित छे, अने मंगलरूप पर्याय तेनाथी सर्वथा भिन्न नथी / आथी मंगलमां पण अनादि अनंतपणुं बनी जाय छे। शंका-आ रीते तो मिथ्यादृष्टि अवस्थामां पण जीवने मंगलपणानी प्राप्ति थई जशे ?