________________ विमाग नमस्कार स्वाध्याय / उवज्झायनमुक्कारो एवं खलु वण्णिओ महत्थु त्ति / जो मरणम्मि उवग्गे अभिक्खणं कीरए बहुसो॥ 120 // 1006 // उवज्झायनमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं चउत्थं होइ मंगलं // 121 // 1007 // नामं ठवणासाहू दव्वसाहू अ भावसाहू अ। दव्वम्मि लोइआई भावम्मि अ संजओ साहू // 122 // 1008 // घडपडरहमाईणि उ साहंता हुंति दव्वसाहु त्ति / अहवावि दव्वभूआ ते हुंती दव्वसाहु त्ति // 123 // 1009 // निव्वाणसाहए जोए जम्हा साहंति साहुणो। समा य सव्वभूएसु तम्हा ते भावसाहुणो // 124 // 1010 // 10 किं पिच्छसि साहूणं तवं व निअम व संजमगुणं वा / तो वंदसि साहूणं एअं मे पुच्छिओ साह // 125 // 1011 // श-आ प्रकारे करेलो नमस्कार महान् अर्थवाळो छे अने मरण नजीकमां होय त्यारे निरंतर अने घणीवार ते गणवामां आवे छे / 120, (1006) . श०-उपाध्यायने करेलो नमस्कार बधांये पापोनो नाश करनारो छे अने बांये मंगलोमां 15 . ए चोथु मंगल छे / 121, (1007) (5) साधु भगवंतने नमस्कार / __साधु शब्द 'साध्' धातुने 'उण्' प्रत्यय लागतां बनेलो छे / जे इच्छित अर्थने साधे ते 'साधु' कहेवाय छे / ते नाम आदि भेदोथी चार प्रकारे छे... श०-१ नाम साधु, 2 स्थापना साधु, 3 द्रव्य साधु, अने 4 भाव साधु-एम चार 20 प्रकारे छे / द्रव्य साधु ते लौकिक वगेरे अने भाव साधु ते संयत-संयमी साधु / 122, (1008) (द्रव्य साधुनुं प्रतिपादन करे छे-) श-घडो, वस्त्र अने रथ वगेरे जे बनावता होय ते 'द्रव्य साधु' कहेवाय, अथवा जे द्रव्यभूत (भावपर्यायथी शून्य ) होय ते 'द्रव्य साधु' कहेवाय / 123, (1009) (भाव साधुनुं प्रतिपादन करे छे-) श०–साधुओ निर्वाणने साधनारा योगो( सम्यग्दर्शन वगेरे )ने साधे छे ( अनुष्ठानो करे 25 छे) तथा बधा प्राणीओ प्रत्ये समभावी होय छे तेथी ते 'भाव साधु' कहेवाय छे / ( योगर्नु प्राधान्य बताववा माटे आ समभाव कह्यो छे / 124, (1010) (साधु विशे प्रश्न-) . श–'साधुओमां तमे कयो तप, नियम अने संयमनो गुण जूओ छो के जेथी तेमने तमे वंदन करो छो ?' एम में पूच्यं त्यारे गुरु कहे छे–१२५, (1011) 30