________________ 156 णमोकारणिज्जुत्ती। [प्राकृत विसयसुहनिअचाणं विसुद्धचारित्तनिअमजुत्ताणं / तच्चगुणसाहयाणं सदायकिञ्चुजयाण नमो // 126 // 1012 // असहाइ सहायत्तं करंति मे संजमं करितस्स / एएण कारणेणं नमामिऽहं सव्वसाहणं // 127 // 1013 // साहूण नमोकारो जीवं मोएइ भवसहस्साओ / भावेण कीरमाणो होइ पुणो बोहिलाभाए // 128 // 1014 // साहूण नमोकारो धन्नाण भवक्खयं कुणंताणं / / हिअयं अणुम्मुअंतो विसुत्तियावारओ होइ // 129 // 1015 // साहूण नमोकारो एवं खलु वण्णिओ महत्थु त्ति / जो मरणम्मि उवग्गे अभिक्खणं कीरए बहुसो // 130 // 1016 // साहूण नमोकारो सव्वपावप्पणासणो / मंगलाणं च सव्वेसिं पंचमं होइ मंगलं // 131 // 1017 // नवि संखेवो व वित्थारु संखेवो दुविहु सिद्ध-साहूणं / वित्थारओऽणेगविहो पंचविहो न जुञ्जई तम्हा // 132 // 1018 // 18 श०—विषय सुखथी दूर रहेनारा, निर्मळ चारित्ररूपी नियमवाळा; वळी, तथ्य गुणोने साधनारा तेमज आत्मकार्यमां हमेशां उद्यमशील एवा साधुओछे तेथी हुं तेमने नमस्कार करुं छु। 126, (1012) श-असहायपणामां मने सहाय करे छे ए कारणथी हुं सर्व साधुओने नमस्कार करुं छु। (127) वि०-परमार्थ साधननी प्रवृत्तिमां जगत् ज्यारे असहाय बने छे त्यारे सहाय वगरना एवा मने संयम राखवामां मदद करे छे ते कारणे हुं ए बधा साधुओने नमस्कार करं छं / 127, (1013) 20 (उपसंहार करतां कहे छे-) श–साधुने करेलो नमस्कार, जो ते भावथी ( हृदयपूर्वक) करेलो होय तो ते हजारो भवथी छोडावे छे अने ते नमस्कार अंते बोधिबीज-सम्यक्त्व आपनारो बने छ / 128, (1014) श-भवनो क्षय करवा इच्छता जे धन्य मनुष्यो, पोताना हृदयमा साधुने नमस्कार करवानुं छोडता नथी, तेमना दुर्ध्यान, निवारण तो ते जरूर करे ज छ। 129, (1015) 25 श०-आ प्रकारे करेलो नमस्कार महान् अर्थवाळो छे अने मरण नजीकमां होय त्यारे निरंतर अने घणीवार ते गणवामां आवे छे / 130, (1016) श०–साधुने करेलो नमस्कार, बधांये पापोनो नाश करनारो छे, अने बधांये मंगलोमां ए पांचमुं मंगल छे / 131, (1017) 7. आक्षेप द्वार। 30 नमस्कार मंत्रना विषयने समजवा माटे विशेषरीते केटलीक शंकाओ करवामां आवे छे / ते शंकाओ विवरण मात्र आ द्वारमा करेलुं छे /