________________ 15 विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। आयारो नाणाई तस्सायरणा पभासणाओ वा / जे ते भावायरिया भावायारोवउत्ता य // 109 // 995 // आयरियनमुक्कारो जीवं मोएइ भवसहस्साओ। भावेण कीरमाणो होइ पुमो बोहिलाभाए // 110 // 996 // आयरियनमुक्कारो धन्नाण भवक्खयं कुणंताणं / हिअयं अणुम्मुयंतो विसुत्तियावारओ होइ // 111 // 997 // आयरियनमुक्कारो एवं खलु वण्णिओ महत्थु त्ति / जो मरणम्मि उवग्गे अभिक्खणं कीरए बहुसो // 112 // 998 // आयरियनमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो।। मंगलाणं च सव्वेसिं तइ होइ मंगलं // 113 // 999 // नामंठवणादविए भावम्मि चउव्विहो उवज्झाओ। दव्वे लोइअ सिप्पाइ निण्हगा वा इमे भावे // 114 // 1000 // श–आचार ते ज्ञान वगेरे / तेनुं आचरण करता होवाथी तेमज उपदेश देता होवाथी जे भाव आचारथी युक्त होय ते 'भावाचार्य' कहेवाय छे / 109, (995) __(उपसंहार करतां कहे छे-) ____ श–आचार्यने करेलो नमस्कार, जो ते भावथी ( हृदयपूर्वक ) करेलो होय तो ते हजारो भवथी छोडावे छे अने ते नमस्कार अंते बोधिबीज-सम्यक्त्वने आपनारो बने छ / 110, (996) ... श०–भवनो क्षय करवा इच्छता जे धन्य मनुष्यो, पोताना हृदयमा आचार्यने नमस्कार करवानुं छोडता नथी, तेमना दुर्ध्याननिवारण तो ते जरूर करे ज छे / 111, (997) श०-आ प्रकारे करेलो नमस्कार महान् अर्थवाळो छे अने मरण नजीकमां होय त्यारे 20 निरंतर अने घणीवार ते गणवामां आवे छे / 112, (998) - श०-आचार्यने करेलो नमस्कार बधांये पापोनो नाश करनारो छे अने बधांये मंगलोमां आ त्रीजुं मंगल छे / 113, (999) (4) उपाध्याय भगवंतने नमस्कार / उपाध्याय शब्द 'उप' उपसर्गपूर्वक 'इ' धातुने 'घ' प्रत्यय लागतां बनेलो छ। जेमनी 25 पासे आवीने साधुओ सूत्रनो अभ्यास करे ते 'उपाध्याय' कहेवाय छे / ते उपाध्याय नाम आदि प्रकारो वडे चार भेदे छे। श-१ नाम उपाध्याय, 2 स्थापना उपाध्याय, 3 द्रव्य उपाध्याय अने 4 भाव उपाध्याय-एम उपाध्यायना चार प्रकारो छे / द्रव्य उपाध्यायमां लौकिक शिल्प आदिने भणावनारा तथा निह्नवो पण गणाय छे / उपाध्याय नीचे प्रमाणे छे। (114 ) वि०–आचार्यना वर्णनमा जेम कहेलुं छे तेम आमां पण नाम आदि भेदो माटे समजवू परंतु तेमां जे निह्नव कयुं छे तेनो अर्थ ए छे के, एक पण पदार्थने अभिनिवेशथी विरुद्धरीते प्ररूपणा करता होय ते मिथ्यादृष्टिओ 'द्रव्य उपाध्याय' कहेवाय छे / 114, (1000) 30