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________________ 152 णमोक्कारणिज्जुत्ती। [प्राकृत सिद्धाण नमुक्कारो एवं खलु वण्णिओ महत्थु त्ति / जो मरणम्मि उवग्गे अमिक्खणं कीरए बहुसो // 105 // 991 // सिद्धाण नमुकारो सव्वपावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसि बिइअं होइ मंगलं // 106 // 992 // नामं ठवणादविए भावम्मि चउविहो उ आयरिओ। दवम्मि एगभविआई लोइए सिप्पसत्थाई // 107 // 993 // पंचविहं आयारं आयरमाणा तहा पभासंता / आयारं दंसंता आयरिया तेण वुच्चंति // 108 // 994 // श-आ प्रकारे करेलो नमस्कार महान् अर्थवाळो छ अने मरण नजीकमां होय त्यारे 10 निरंतर अने घणीवार ते गणवामां आवे छे / 105, (991) / श-सिद्धने करेलो नमस्कार बधांये पापोनो नाश करनार छे अने बधांये मंगलोमां आ बीजं मंगल छे / 106, (992) (3) आचार्य भगवंतने नमस्कार / आचार्य शब्द आङ् उपसर्गपूर्वक चर् धातुने ण्य प्रत्यय लागतां बन्यो छे / ते ते विषयनी 15 मर्यादाथी आचरणा करे ते 'आचार्य' कहेवाय छ / अथवा मुमुक्षु भक्तो वडे जेमनी सेवा थाय तेमने ' आचार्य कहे छ। श०-१ नाम आचार्य, 2 स्थापना आचार्य, 3 द्रव्य आचार्य अने 4 भाव आचार्यएम चार प्रकारना आचार्यो छे / एकभविक आदि अथवा लौकिक शिल्पशास्त्र वगैरे जाणनार होय ते द्रव्य आचार्य कहेवाय छे / (107) 20 वि०-नाम अने स्थापना सुगम छे .(अगाऊ अरिहंत अने सिद्धना वर्णनमा जणावी दीघेल छे अने द्रव्य आचार्यना आगमथी तेमज नोआगमथी वगेरे भेदो अरिहंत अने सिद्धना वर्णनमां बतावेला छे ते मुजब द्रव्य आचार्यना भेद पण समजी लेवा / ). एकभाविक एटले जेमने आचार्यपद प्राप्त थाय छे एवा प्रकारनुं मनुष्यनुं आयुष्य बांधेलु होय एवा आत्मा अथवा आदिशब्दथी द्रव्यभूत आचार्य ते द्रव्याचार्य / द्रव्य निमित्त जे आचार25 वाळा होय ते भावाचार्य कहेवाय छे / ते लौकिक अने लोकोत्तर एवा बे भेदे छे / तेमां लौकिक ते शिल्पशास्त्र वगेरे। तेना ज्ञानथी तेनो अभेद उपचार करतां ते आचार्य कहेवाय / 107, (993) (हवे लोकोत्तर एवा भावाचार्य- प्रतिपादन करे छे-) श०-पांच प्रकारना आचारने आचरनारा, तथा उपदेश आपनारा तेमज आचारने बतावनारा होवाथी ते आचार्य कहेवाय छे / (108) 30 वि०-पंचविध आचार ते-१ ज्ञानाचार, 2 दर्शनाचार, 3 चारित्राचार, 4 तप आचार अने 5 वीर्याचार-आ आचारोने पाळनारा, अनुष्ठानथी आचरण करनारा, व्याख्यानथी उपदेश देता, तेमज पडिलेहणा वगेरे आचारने बतावता होवाथी आचार्य कहेवाय छे। 108, (994)
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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