________________ 15 * विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / सिद्ध त्ति अ बुद्ध त्ति अ पारगय त्ति अ परंपरगय त्ति / उम्मुक्ककम्मकवया अजरा अमरा असंगा य // 101 // 987 // निच्छिन्नसव्वदुक्खा जाइ-जरा-मरण-बंधणविमुक्का / अव्वाबाहं सुक्खं अणुहुंती सासयं सिद्धा // 102 // 988 // सिद्धाण नमोकारो जीवं मोएइ भवसहस्साओ। भावेण कीरमाणो होइ पुणो बोहिलाभाए // 103 // 989 // सिद्धाण नमुक्कारो धन्नाण भवक्खयं कुणंताणं / हिअयं अणुम्मुयंतो विसुत्तियावारओ होइ // 104 // 990 // श-जेम कोई मनुष्य बधा प्रकारना इच्छित गुणोवाळु भोजन करीने तृषा अने क्षुधाथी विमुक्त बनी पीडा विना जेम अमृततृप्त बनीने रहे छे, ए प्रकारे बधाये (भूत, भविष्य अने वर्तमान) 10 काळमां तृप्त बनीने रहेला, तुलना करी न शकाय तेवा निर्वाण अर्थात् मोक्षने प्राप्त थयेला सिद्धो शाश्वत, अने अव्याबाध एवा सुखने प्राप्त करीने सुखी थईने रहेला छे / 99-100, (985-986) (सिद्धना पर्यायवाची शब्दो कहे छे-) श०-सिद्ध, बुद्ध, पारगत, परंपरागत, उन्मुक्तकर्मकवच, अजर, अमर अने असंग-ए प्रकारे (सिद्धनां नामो) छे / (101) . वि० तेओ कृतकृत्य बनी गया होवाथी 'सिद्ध' कहेवाय छे / तेमणे केवळज्ञान वडे समग्र वस्तुओने जाणी लीधी छे तेथी 'बुद्ध' कहेवाय छे / तेओ संसाररूप समुद्रनो पार पामी गया होवाथी 'पारगत' कहेवाय छे / पुण्य बीज सम्यक्त्व, ते पछी ज्ञान अने ते पछी चारित्र एम क्रमप्राप्त उपायथी मुक्त थया होवाना कारणे 'परंपरागत' कहेवाय छे / तेओ बधां कर्मोथी छूटी गया होवाथी 'उन्मुक्तकर्मकवच' कहेवाय छे / तेमने ऊमर( बाल, युवा, जरा )नो अभाव छे तेथी तेमने 20 'अंजर' कहे छे अने बधा प्रकारना क्लेशोनो त्यां अभाव छे तेथी 'असंग' कहेवाय छ। 101, (987 ) (हवे उपसंहार करतां कहे छे-) ___ श० ते सिद्धोए बधां दुःखो छेदी नाख्यां छे, वळी ते जन्म, जरा, मरणनां बंधनोथी मुकायेला छे अने अव्याबाध तेमज शाश्वत एवा सुखनो अनुभव करे छे / 102, (988) . श०-सिद्धोने करेलो नमस्कार, जो ते भावथी (हृदयपूर्वक) करेलो होय तो ते हजारो 25 भवथी छोडावे छे अने ते नमस्कार अंते बोधिबीज-सम्यक्त्वने अपनारो बने छ / (103) वि०-आ गाथामां 'सिद्ध' शब्दथी स्थापना नमस्कार, 'नमुक्कारो' शब्दथी नामनमस्कार, 'भावेण'थी भावनमस्कार अने अंजलि वगेरेथी करातो नमस्कार ते 'द्रव्यनमस्कार' छे एम चार निक्षेपो जणाव्या छे / 103, (989) श०-भवनो क्षय करवा इच्छता जे धन्य मनुष्यो, पोताना हृदयमां सिद्धने नमस्कार 30 करवानुं छोडता नथी, तेमना दुर्ध्यान- निवारण तो ते जरूर करे ज छे / ( अर्थात् एक मात्र धर्मध्यानमा जोडी राखे छे / 104, (990)