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________________ [प्राकृत . णमोक्कारणिज्जुत्ती। सिद्धस्स सुहो रासी सव्वद्धापिंडिओ जइ हविजा / सोऽणंतवग्गभइओ सव्वागासे न माइजा // 96 // 982 // जह नाम कोइ मिच्छो नगरगुणे बहुविहे विआणतो।। न चएइ परिकहेउं उवमाइ तहिं असंतीए // 97 // 983 // इअ सिद्धाणं सुक्खं अणोवमं नत्थि तस्स ओवम्म / किंचि विसेसेणित्तो सारिक्खमिणं सुणह वुच्छं // 98 // 984 // जह सव्वकामगुणिअं पुरिसो भोत्तूण भोअणं कोइ / तण्हा-छुआविमुक्को अच्छिज जहा अमिअतित्तो // 99 // 985 // इअ सव्वकालतित्ता अउलं निव्वाणमुवगया सिद्धा। सासयमव्वाबाहं चिट्ठति सुही सुहं पत्ता // 100 // 986 // वि०-देवताओना समूहर्नु समग्र सुख ते भूतकाळ, भविष्यकाळ अने वर्तमानकाळजें एकतुं करवामां आवे, तेने बधा समयथी गुणीए अने ते अनंतगणुं थाय तेने अनंत एवा वर्गोथी गुणवामां आवे तोपण मुक्तिना सुखनी तुलना करी शके नहीं / 95, (981) (ए ज वस्तुने जूदा प्रकारे बतावे छे-) 15 श०-सिद्धोना जीवोनो सुखनो राशि-समूह जो बधाये समयने एकत्रित करवामां आवे .. अने तेने अनंत वर्गोथी विभाजित करीए तो ते भाग समग्र आकाशमां पण माई शके नहीं / (96) वि०-आ गाथानो रहस्यार्थ ए छे के, सुख ए विशिष्ट आहादरूप छे / ज्यारथी आरंभीने शिष्ट मनुष्योमा सुख शब्दनी प्रवृत्ति थयेली छे त्यारथी ते आह्लादथी मांडीने शरूआत करीए अने एकेक गुणनी वृद्धिनी तरतमताथी आ आह्लादने त्यां सुधी विशेषित करीए के ते अनंत 20गुण–वृद्धिथी निरतिशय गुणनी पूर्णताने पामे / तेथी आ आह्वाद अत्यंत, उपमातीत, एकांत, उत्सुकता वगरनो, स्थिर एवो जे छेल्लो आह्लाद ते हमेशां सिद्धोने होय छे / 96, (982) (सिद्धोना सुखने दृष्टांतथी बतावे छे-) श०-जेम कोई म्लेच्छ नगरना अनेक प्रकारना गुणो जाणवा छतां उपमा न मळती होवाना कारणे (ते नगरना गुणोने ) कहेवाने शक्तिमान थतो नथी। (तेम आ मोक्षसुख उपमाथी 25 बतावी शकातुं नथी।) 97, (983) श—आ प्रकारे सिद्धोनुं सुख अनुपम छे; केमके तेनी कोईनी साथे उपमा आपी शकाय एम नथी; छतां बाळ मनुष्योने समजाववा माटे कंईक विशेषतापूर्वक महापुरुषोए जे सादृश्य बतावेलुं छे ते जणावीए छीए, ते तमे सांभळो / / (98) वि०–अर्थात् समग्र दोषोना क्षयथी शाश्वत अने अव्याबाध एवा सुखने प्राप्त थयेला सुखी 30 बनीने ते सिद्धो रहेला छ। 'तेओ दुःखना अभाव मात्रथी युक्त छे' एम नथी ज / 98, (984)
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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