________________ 5 णमोकारणिज्जुत्ती। [प्राकृत ओगाहणाइ सिद्धा भवत्तिभागेण हुंति परिहीणा / संठाणमणित्थंत्थं जरा-मरणविप्पमुक्काणं // 88 // 974 // जत्थ य एगो सिद्धो तत्थ अणंता भवक्खयविमुक्का। अनुन्नसमोगाढा पुट्ठा सव्वे अ लोगते // 89 // 975 // फुसइ अणंते सिद्धे सव्वपएसेहि नियमसो सिद्धो / तेऽवि असंखिजगुणा देसपएसेहिं जे पुट्ठा // 90 // 976 // असरीरा जीवघणा उवउत्ता दंसणे अ नाणे अ / सागारमणागारं लक्खणमेअं तु सिद्धाणं // 91 // 977 // ( हवे सिद्धोनां संस्थान वगेरे जणावे छे-) 10 श०-भवना त्रीजा भागे न्यून एवी सिद्धोनी अवगाहना होय छे / वृद्धावस्था अने मरणथी छूटेला एवा सिद्धोनुं कोई लौकिक संस्थान होतुं नथी / 88, ( 974) श०-ज्यां एक सिद्ध छे त्यां भवनो क्षय थवाथी मुक्त थयेला अनंता सिद्धो छ। ते परस्पर अवगाहीने अने सर्व लोकना अंतने स्पर्शीने रहेला छे / 89, (975) श०–एक सिद्ध सर्व प्रदेशो वडे नियमथी अनंता सिद्धोने स्पर्शे छे अने जे प्रमाणे देश15 प्रदेशोथी स्पर्शायेला छे ते तेनाथी पण असंख्यात गुणा छे / (90) वि०—आ गाथानो तात्पर्यार्थ ए छे के एक क्षेत्रमा अनंता सिद्धो अवगाहीने रहेला छे तेवा करतां प्रदेशनी वृद्धि-हानिथी जे अवगाहीने रहेला छे ते तो असंख्येय गुणा छे, केमके एक सिद्धनी अवगाहना असंख्येय प्रदेशनी छे / 90, (976) (हवे सिद्धोनुं लक्षण प्रतिपादन करे छे-) 20 श. जे अशरीरी छे, जेमना जीवप्रदेशो घन थयेला छे, वळी जे दर्शन अने ज्ञानमां उपयुक्त बनेला छे, अने जे साकार उपयोगवाळा छे तेमज निराकार उपयोगवाा छे ते सिद्धो कहेवाय छे आ प्रकारे सिद्धोनुं लक्षण छ / वि०-जेमने औदारिक वगेरे पांच प्रकारनां शरीरो पैकी एके नथी / वळी, जे छिद्रोने पूरी देवाना कारणे जीवप्रदेशोथी घन छे; वळी, जेओ केवळदर्शन अने केवळज्ञानना उपयोगवाळा 28छे / जे सामान्य विषयवाळू होय ते 'दर्शन' कहेवाय छे अने विशेष विषयवाळु होय ते 'ज्ञान' कहेवाय छे / तेथी अहीं सामान्य एवा सिद्धोनुं लक्षण बताववा माटे सामान्यना अवलंबनभूत दर्शनने आदिमां जणावेलुं छे / __ आ गाथा पछी सिद्धिमा व्यवस्थित थयेला सिद्धोना निरुपम सुखनुं स्वरूप बतावे छे / 91, (977)