________________ 146 णमोक्कारणिज्जुत्ती। [प्राकृत तिनि सया तित्तीसा धणु त्ति भागो अकोस छब्भाओ। जं परमोगाहोऽयं तो ते कोसस्स छब्भाए // 80 // 966 // उत्ताणउ व्व पासिल्लउ व्व अहवा निसन्नओ चेव / जो जइ करेइ कालं सो तह उववजए सिद्धो / / 81 // 967 // इहभवभिन्नागारो कम्मवसाओ भवंतरे होइ। न य तं सिद्धस्स जओ तम्मी तो सो तयागारो // 82 // 968 // जं संठाणं तु इहं भवं चयंतस्स चरमसमयम्मि / आसी अ पएसघणं तं संठाणं तहिं तस्स // // 83 // 969 // दीहं वा हस्सं वा जं चरमभवे हविज संठाणं / तत्तो तिभागहीणा सिद्धाणोगाहणा भणिआ // 84 // 970 // 10 ( उपर्युक्त अवगाहनानुं फरीने समर्थन करे छे-) श-त्रणसो ने तेत्रीश धनुष्यनो जे त्रीजो भाग अर्थात् कोशनो छठ्ठो भाग थाय एवा कोशना छठा भागे सिद्धोनी उत्कृष्ट अवगाहना होय छे / 80, (966) (सिद्धोना उपपात विशे कहे छे-) 15 श०-चत्तो, पडखे, अर्ध नमेलो, बाजुमां रहेलो, तीर्थो रहेलो अथवा बेठेलो जे आत्मा जे रीते काळ करे छे ते ते रीते ज सिद्धपणे उत्पन्न थाय छे / 81, (967) श०-(जीव) आ भवमांथी बीजा भवमां (स्वर्ग वगेरेमां) जतां भिन्न आकार प्राप्त थाय छे पण सिद्धने तो ते (कर्मों) नथी एटले तेमां पहेला जेवो ज आकार होय छे / (मतलब के, अपवर्गमां आ सिद्ध जीवो पूर्वभवना आकारवाळा ज ऊपजे छे) 82, (968) 20 (वळी कहे छे-) श०-आ भवने त्यजती वखते छल्ला समये (सिद्धना जीवोने) जे संस्थान होय ते ज घन प्रदेशवाळु संस्थान ते सिद्धने होय छे / 83, (969) (वळी कहे छे—) श०-लांबु अथवा ट्रॅकुं एवं जे संस्थान छेल्ला समये होय, तेनाथी त्रीजे भागे ( 1 भागे) 25 न्यून एवी सिद्धोनी अवगाहना (जिनेश्वरोए) कहेली छे / (84) वि०-लांबु एटले पांचसो धनुष्य प्रमाण, ट्रंकुं एटले बे हाथ प्रमाण, मध्यम एटले विचित्र / प्र०-छेल्ला भवमां जे संस्थान होय तेनाथी त्रीजा भागे न्यून एम शा माटे कहो छो ? उ०-छिद्रो जेटलो त्रीजो भाग पूराई जाय छे तेथी सिद्धोनी अवगाहना एटली होय छे। अवगाहना एटले अवस्था / 84, (970)