________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। 145 15 निम्मलदगरयवण्णा तुसारगोखीरहारसरिवन्ना / उत्ताणयछत्तयसंठिआ य भणिया जिणवरेहिं // 75 // 961 // एगा जोअणकोडी बायालीसं च सयसहस्साई / तीसं चेव सहस्सा दो चेव सया अउणवन्ना // 76 // 962 // बहुमज्झदेसभागे अढेव य जोअणाणि बाहल्लं / चरमंतेसु अ तणुई अंगुलऽसंखिजईभागं // 77 // 963 // गंतूण जोअणं जोअणं तु परिहाइ अंगुलपुहुत्तं / / तीसेविअ परंता मच्छिअपत्ताउ तणुअयरा // 78 // 964 // ईसीपभाराए सीआए जोअणम्मि जो कोसो। कोसस्स य छब्भाए सिद्धाणोगाहणा भणिआ // 79 // 965 // 10 (सिद्धिभूमिर्नु स्वरूप वर्णवे छे-) श० ते ( सिद्धभूमि ) निर्मळ पाणीना बिंदुओना वर्ण जेवी छे, हिम जेवा वर्णनी छे, गायनुं दूध अगर हारना जेवा वर्णवाळी छे / (अने तेनुं संस्थान-) चत्ता छत्रनी माफक रहेली होय तेवी सिद्धिभूमि छे; एम जिनेश्वर भगवंतोए कहेलुं छे / 75, (961) (सिद्धिभूमिनी परिधि जणावे छे-) श-एक करोड, बेंतालीस लाख, त्रीश हजार, बसो ने ओगणपचास योजन ए सिद्धिभूमिनी परिधि छे / (76) वि०—आ परिधिनुं प्रमाण स्थूल दृष्टिए अहीं बताव्यु छे पण क्षेत्रनी परिधिनो बीजो थोडोक वधारो अने विस्तार ‘पन्नवणासूत्र'थी जाणी लेवो / 76, (962) (सिद्धिभूमिनी जाडाई-पातळाई बतावे छे-) श-सिद्धशिलाना मध्य भागमा आठ योजननी जाडाई होय छे अने छेडे अंगुलना , असंख्यातमा भाग जेटली ते पातळी होय छे / 77, (963) (सिद्धिभूमिनी पातळाईनो क्रम जणावे छे-) श०-योजन योजन आगळ (वधीए तो) अंगुल पृथक्त्वभाग प्रमाण ओछी ओछी थती जाय छे ( अने एम ओछी थतां थतां ) तेना छेडाना भागो माखीनी पांख करतांये पातळा 25 होय छे / 78, (964) (सिद्धोनी अवगाहना बतावे छे-) ___ श०-सीता (जेनुं बीजुं नाम छे) एवी ईषद्प्राग्भाराथी उपर एक योजनमा जे छेल्लो गाउ छे तेना उपरना छठ्ठा भागमां सिद्धोनी अवगाहना होय छे / ए प्रकारे लोकना अग्रभागमां सिद्धो प्रतिष्ठित छे / ) 79, (965) 20 30