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________________ नमस्कार स्वाध्याय / 143 न किलम्मइ जो तवसा सो तवसिद्धो दढप्पहारि व्व / सो कम्मक्खयसिद्धो जो सव्वक्खीणकम्मंसो // 66 // 952 // दीहकालरयं जं तु कम्मं सेसिअमट्ठहा / सिअं धंतं ति सिद्धस्स सिद्धत्तमुवजायइ // 67 // 953 // नाऊण वेअणिजं अइबहुअं आउअंच थोवागं / गंतूण समुग्घायं खवंति कम्मं निरवसेसं // 68 // 954 // दंड कवाडे मंथंतरे अ साहरणया सरीरत्थे / भासाजोगनिरोहे सेलेसी सिझणा चेव // 69 // 955 // जह उल्ला साडीआ आसु सुक्कइ विरल्लिआ संती / तह कम्मलहुअ समए वचंति जिणा समुग्घायं // 70 // 956 // 10 (तपसिद्ध अने कर्मक्षयसिद्धनां लक्षण जणावे छे-) श०-जे मानवी (बाह्य अने अभ्यंतर ) तपथी क्लेश पामतो नथी ते दृढप्रहारीनी जेम 'तपसिद्ध' कहेवाय छ; अने जेमणे कर्मना बधा अंशोनो नाश कर्यो छे ते 'कर्मक्षयसिद्ध' कहेवाय छे / 66, (952) (कर्मक्षय सिद्धनुं लक्षण जणावे छे-) ___16 श०-दीर्घ स्थितिवाळु आठ प्रकारनुं बांधेलु जे कर्म तेने ध्यानरूपी अग्निथी भस्मीभूत कर्यु होवाथी सिद्धने सिद्धपणुं प्राप्त थाय छे / 67, ( 953 ) श-वेदनीय कर्म घणुं वधारे छे अने आयुष्यकर्म थोडं छे एम जाणीने केवली भगबानो समुद्घात करीने समग्र कर्मनो क्षय करी नाखे छे / 68, (954) ___ श०–शरीरमा रहेल होवा छतां आत्मप्रदेशोने दंड, कपाट, मंथान अने अंतरने पूर्ण करतां 20 भाषायोगनो निरोध करीने शैलेशीकरण पामे त्यारे सिद्ध थाय छे / (69) वि०-समुद्घात करती वखते पहेला समये दंड, बीजा समये कमाड अने त्रीजा समये खयो करीने, चोथा समये अंतर (बाकी रहेली बधी खाली जगा)ने पूर्ण करीने समग्र लोकमां आत्माने व्याप्त करी दे छे, पछी ते ज क्रमे आत्मप्रदेशोने संहरीने आठमा समये शरीरस्थ थई आय छ / त्यार पछी भाषायोगनो (मनोयोगनो अने काययोगनो पण ) निरोध करीने, शैलेशीकरण 25 करीने सिद्ध थाय छे-मोक्ष प्राप्त करे छे / 69, (955) (समुद्धातने दृष्टांतथी बतावे छे-) श-जेम भीनी साडी पहोळी करी होय तो ते सुकाई जाय छे ते प्रमाणे प्रयत्नविशेषथी मरूप पाणी पण सूकाई जाय छे माटे कर्मनी लघुताना समये जिनेश्वरो समुद्घात करे छे / 70, (956)
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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