________________ विभाग] नमस्कार खाध्याय। 139 सव्वेवि दव्वजोगा परमच्छेग्यफलाऽहवेगोवि / जस्सेह हुज सिद्धो स जोगसिद्धो जहा समिओ // 48 // 934 // आगमसिद्धो सव्वंगपारओ गोअमु व गुणरासी / पउरत्थो अत्थपरो व मम्मणो अत्थसिद्ध त्ति // 49 // 935 // ___“कोई एक नगरमा एक सौंदर्यवती साध्वीने कोई विषयलोलुप राजाए पकडी, त्यारे संघ / एकठो थयो अने एक सिद्धमंत्र आचार्य राजाना महेलना प्रांगणमा जे स्तंभो हता तेने आकर्षित कर्या / ते स्तंभो अवाज करता आकाशमां ऊंचे जवा लाग्या, अने महेलना बीजा स्तंभो पण हाली ऊठ्या / आथी राजा भय पाम्यो अने साध्वीने छोडी मूकी, तेणे श्रीसंघनी माफी मागी।" आ प्रकारना होय ते 'सिद्धमंत्र' कहेवाय छे / 47, (933) ( योगसिद्धने बतावे छे-) 10 श०–भारे आश्चर्यकारक समग्र द्रव्योनी मेळवणी जे जाणता होय अथवा जेमणे एक पण योग सिद्ध कर्यो होय ते 'योगसिद्ध' कहेवाय छे / एवा योगसिद्ध तरीके आर्य समिताचार्य जाणीता हता। तेमनी कथा आ प्रकारे छः ___"आभीर देशमां कृष्णा अने बेन्ना नामनी नदीओनी वच्चे (एक टापु उपर) केटलाक तापसो रहेता हता। त्यांनो एक तापस पगे लेप करीने पाणीमां फरतो फरतो ( नदीकिनारे) 15 आवतो-जतो / आथी लोको तेने मान आपवा लाग्या / श्रावकोनी श्रद्धा पण चलायमान थवा लागी। .. श्रीवज्रस्वामीना मातुल आर्य समितसूरि विहार करता त्यां आव्या। श्रावको तेमनी पासे गया। तेमणे ( पेला तपासनी हकीकत जाणीने ) कह्यु के, आ अक्रिया छ। एम थाय ए आचार्यने गम्युं नहीं। - तेमणे कयुं के, आर्यो ! शा माटे राह जूओ छो ? आ (तापस) कोई योगचूर्ण (पगे) घसी लावे छे, तेथी ते आ रीते फरी शके छे / ते तापसने बोलाववामां आव्यो। कोई श्रावके कडं के, अमे 20 पण तमने दान आपीए छीए, माटे हे भगवन् ! पहेलां आप पग धोई नाखशो तो अमे आभारी थईशं। ___ ते तापसे अनिच्छाए पग अने पादुकाओ धोई नाखी / ते पछी ते पाणीमां गयो अने डूबवा लाग्यो / आथी तेनी भारे निंदा थवा लागी / आवा दंभना कारणे ए लोकजीभे चवाई गयो। आचार्य (पोताना स्थानथी) बहार नीकळ्या / तेमणे नदीमा योगचूर्ण नाखीने नदीने कह्युः 'हे पुत्री बेन्ना नदी ! किनारो आप। मारे पूर्व तरफना किनारे जq छ।' आथी बने किनारा भेगा थई गया। 25 आचार्ये ते बधा तापसोने (जैन) दीक्षा आपी। ते बधा ब्रह्मद्वीपमा रहेनारा 'ब्रह्मद्वीपिक' कहेवाया।" 'योगसिद्ध' आ प्रकारना होय छे / 48, (934) (आगमसिद्ध अने अर्थसिद्ध विशे कहे छे-) श०-समग्र अंगोना पारगामी ते 'आगमसिद्ध' कहेवाय / एवा आगमसिद्ध तरीके गुणोना भंडार श्रीगौतमस्वामी प्रसिद्ध हता। एम ज जे महाधनवान् के धनमां ज निष्ठावाळो होय ते 30 मम्मण श्रेष्ठीनी माफक 'अर्थसिद्ध' कहेवाय छे / (49)