________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / 137 इत्थी विजाऽभिहिया पुरिसो मंतु त्ति तबिसेसोयं / विजा ससाहणा वा साहणरहिओ अ मंतु त्ति // 45 // 931 // विजाण चक्कवट्टी विजासिद्धो स जस्स वेगावि / सिज्झिन्ज महाविजा विजासिद्धजखउडु व्व // 46 // 932 // तेने पकडी लेवामां आव्यो / एने मार मारवामां आव्यो त्यारे एणे (राजा, राणी अमुक / स्थळे होवानुं) कही दीर्छ / राजाने राणीनी साथे पकडी लेवामां आव्यो / एमने भोजन आपवानो निषेध कर्यो / नगरजनोए अपयशनी बीके कापिंड प्रवर्ताव्या। कोकासने ( राजाए ) कह्युः ‘मारा पुत्रने माटे सात माळनो महेल बनाव अने वच्चना भागमा मारा माटे (महेल) बनाव, जेथी हुं बधा राजाओने अहीं लावी शकुं। कोकासे एवी रचना करी दीधी। ___ कोकासे काकेवर्णना पुत्रने लेख मोकल्यो के तमे अहीं आवो, एटलामा हुं आ( राजा )ने 10 मारी नाखुं छु / तमारा पिताने अने मने छोडावो / ए रीते दिवस नक्की करायो। - ए दिवसे राजा पुत्रनी साथे महेलमा पेठो। ( कोकासे) खीली उपर प्रहार कर्यो एटले ए (महेल) संपुट बनी गयो ( अर्थात् बीडाई गयो) राजा अने एनो पुत्र मरण पाम्या / काकवर्णना पुत्रे ए नगर लई लीधुं / मा-बाप अने कोकासने मुक्त कर्या / " (विद्यासिद्धनुं स्वरूप कहे छे-) श-विद्या अने मंत्रमा एटलो ज तफावत छे के, स्त्री-देवताथी अधिष्ठित होय ते 'विद्या' कहेवाय अने पुरुष-देवताथी अधिष्ठित होय ते 'मंत्र' कहेवाय छे / अथवा विद्या (होम बगेरे ) साधनाथी सिद्ध थाय छे, ज्यारे मंत्र साधन विना ज सिद्ध थाय छे / 45, ( 931) (विद्यासिद्धने दृष्टांतपूर्वक जणावे छे-) श-जे सर्व विद्याओना चक्रवर्ती छे अथवा जेमणे एक पण विद्याने सिद्ध करी छे ते 'विद्या- 20 सिद्ध' गणाय छे / जेम आर्य खपुटाचार्य विद्यासिद्ध तरीके प्रसिद्ध हता। तेमनी कथा आ प्रकारे छे "आर्य खपुटाचार्य विद्यासिद्ध हता। तेमनो बाळ भाणेज (भुवन नामे ) शिष्य हतो। तेणे तेमनी पासेथी विद्या सांभळीने ग्रहण करी लीधी; विद्यासिद्धने नमस्कार करवाथीये विद्या सिद्ध थाय छे, एवा ते विद्याचक्रवर्ती (आर्य खपुटाचार्य ) ते भाणेजने भरूचमां ( कोई ) साधु पासे मूकीने पोते गुडशस्त्रनगरमां गया / त्यां कोई (बौद्ध) भिक्षुने (जैन) साधुओए वादमा हराव्यो हतो / 25 हार सहन न करी शकवाथी ते (अनशन करी) मरी गयो, अने गुडशस्त्रनगरमां बृहत्कर नामे ध्यंतर थयो / त्यां तेणे ( जैन ) साधुओने उपद्रव करवा मांड्या / ए माटे आर्य खपुटाचार्य त्यां गया। नगरमां आवीने ते यक्षमंदिरमा आचार्य महाराज ते मूर्तिना कान उपर पग मूकीने सूई गया / मंदिरना पूजारीए आवीने जोयुं अने त्यांथी जईने ते माणसोने बोलावी आव्यो / आचार्य 15 1. जे द्वारा आहार मळी शके। 18