________________ 132 णमोकारणिजुत्ती। [प्राकृत अट्ठविहं पि य कम्मं अरिभूयं होइ सव्वजीवाणं / तं कम्ममरिं हंता अरिहंता तेण बुचंति // 34 // 920 // अरिहंति वंदणनमंसणाई अरिहंति पूअसक्कारं। सिद्धिगमणं च अरिहा अरहंता तेण वुचंति // 35 // 921 // 5 1. शारीरी एटले शरीर संबंधी, 2 मानसी एटले मन संबंधी, अने 3 ऊभयरूप एटले शरीर अने मन ए बने संबंधी समजवी / आ बधा शत्रुओने हणनारा ते अरिहंत कहेवाय एवी निरुक्ति छ। प्र०-पूर्वनी गाथामां आंतर शत्रुओ विशे जणाव्युं छे तो पछी आ गाथामां फरीने तेमनो निर्देश केम कर्यो ? उ०—पूर्वनी गाथामां तो नमस्कारने योग्य एवा हेतुओ द्वारा अरिहंतने जणाव्या छे, पण 10 वा गाथामां तो अरिहंतना नामनी निरुक्ति बताववा खातर तेमनो निर्देश करेलो छ / 33, (919) (बीजा प्रकारे अरिहंतनी निरुक्ति बतावे छे-) श०-बधा जीवोने आठ प्रकारनां कर्मो पण शत्रुरूप छे / ते कर्मरूप शत्रुओना नाश करनारा ते अरिहंत कहेवाय छे / (34) वि० ते आठ प्रकारनां कर्मो आ प्रकारे छे–१ ज्ञानावरण, 2 दर्शनावरण, 3 वेदनीय, 15 4 मोहनीय, 5 आयुष्य, 6 नाम, 7 गोत्र अने 8 अंतराय / 1 जेना वडे ज्ञान-विशेष बोध अवराय ढंकाय ते ज्ञानावरण / 2 जेना वडे दर्शनसामान्य बोध अवराय ते दर्शनावरण / 3 जेथी सुख के दुःख अनुभवाय ते वेदनीय / 4 जेना वडे आत्मा मोह पामे ते मोहनीय / 5 जेथी भव धारण थाय ते आयुष् / 6 जेथी विशिष्ट गति, जाति, आदि प्राप्त थाय ते नाम / 7 जेथी उच्चपणुं के नीचपणुं पमाय ते गोत्र / 8 जेथी देवा-लेवा 20आदिमां विघ्न आवे ते अंतराय कहेवाय छ / मूळमां अपि शब्द छे तेथी कर्मना विविध स्वभावोनी उत्तर प्रकृतिओ 97 थाय छे / ए अपेक्षाए कर्मो अनेक प्रकारनां छे / अहीं तो ज्ञानावरण आदि आठ प्रकारनां कर्मो ज शत्रुरूप बतावेल छ / बधा प्राणीओने अज्ञान वगेरेनां दुःखो ज कारणभूत छे / एवां दुःखोने जे हणी नाखे छे ते अरिहंत छ / 34, (920) 25 श०-वंदन अने नमस्कारने जे योग्य होय, पूजा अने सत्कारने जे योग्य होय अने सिद्धि एटले मुक्तिमां जवाने जे योग्य होय ते अरहंत कहेवाय छे / (35) वि०-अहं धातु पूजार्थक छे / 'वंदन' मस्तक वगेरे नमाववाथी थाय छे ज्यारे 'नमस्कार' वाणीद्वारा स्तुति करवाथी थाय छे / एटलो बनेनो तफावत छ / वळी, वस्त्र अने गंधमाळाथी जे नमस्कार थाय ते 'पूजा' कहेवाय अने ऊभा थवं, हाथ जोडवा वगेरेथी विनय बताववो ते 'सत्कार' कहेवाय / एटलो बनेमां तफावत छे /