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________________ दिमाग] नमस्कार स्वाध्याय / 133 देवासुरमणुएसुं अरिहा पूआ सुरुत्तमा जम्हा / अरिणो हंता रयं हंता अरिहंता तेण वुचंति // 36 // 922 // अरिहंतनमुक्कारो जीवं मोएइ भवसहस्साओ / भावेण कीरमाणो होइ पुणो बोहिलाभाए // 37 // 923 // अरिहंतनमुकारो धन्नाण भवक्खयं कुणंताणं / हिअयं अणुम्मुअंतो विसुत्तियावारओ होइ // 38 // 924 // अरिहंतनमुक्कारो एवं खलु वण्णिओ महत्थुत्ति / जो मरणम्मि उवग्गे अभिक्खणं कीरए बहुसो // 39 // 925 // जेमां जीवो स्थिरभावने पामे ते सिद्धि, ते लोकना अग्रभागे छे / तेमां गमन करनारा होय ते अरहंत छ / एटले एवी योग्यताने धारण करनारा अरिहंत कहेवाय छे / 35, (921) 10 श०-देवताओमां उत्तम होवाथी जेओ देव, असुर अने मनुष्योथी करायेली पूजाने प्राप्त करे छे / वळी, जे शत्रुओना हणनारा छे अने कर्मरूप रज एटले मेलनो नाश करनारा छे ते अरिहंत कहेवाय छ / 36, (922) / श-अरिहंतने करेलो नमस्कार, जो ते भावथी ( हृदयपूर्वक ) करेलो होय तो ते हजारो भवथी छोडावे छे अने ते नमस्कार छेवटे बोधिबीज एटले सम्यक्त्वने आपनारो बने छ / (37 ) 15 वि०-आ गाथामां अरहंत शब्दथी स्थापना नमस्कार, नमुक्कारो-नमस्कार शब्दथी नाम नमस्कार, भावेण थी भावनमस्कार अने अंजलि वगेरे द्वारा करातो नमस्कार ते 'द्रव्य नमस्कार'एम चार प्रकारो दर्शाव्या छ / 37, ( 923) श०-भवनो क्षय करवा इच्छता जे धन्य मनुष्यो पोताना हृदयमां अरिहंतने नमस्कार करवानुं छोडता नथी तेमना दुर्ध्यानतुं निवारण ते जरूर करे ज छे / ( अर्थात् एक मात्र धर्म 20 ध्यानमा तेमने जोडी राखे छे / ) 38, (924) श-आ प्रकारे करेलो नमस्कार महान अर्थवाळो छे, अने मरण नजीकमां होय त्यारे निरंतर अने घणी वार ते गणवामां आवे छे / (39) वि०-भाष्यकारे तेनो महिमा आ रीते जणाव्यो छे-अग्निनो भय आवे त्यारे बधुं छोडीने एक मात्र महामूल्यवान रत्नने ग्रहण कराय छे, अने युद्धमा मोटो भय उत्पन्न थतां 25 1. अहीं अरहंत शब्दथी बुद्धिमां अरिहंतना आकारनी स्थापना समजवी। 2. सहस्र शब्दथी हजार सुधीनी संख्या गणाय पण अहीं अनंत संख्या समजवी। 3. जो के भावथी नमस्कार करनार बधाने ते भवे मोक्ष मळतुं नथी, छतां भावनाविशेषथी ते बोधिबीजने माटे तो थाय छे, अने जेने सम्यक्त्व प्राप्त थाय तेने नजीकना समयमां अविकलपणे मोक्षनी प्राप्ति थाय छ / 4. धन्य मनुष्यो एटले ज्ञान, दर्शन, चारित्र ए ज जेमनुं धन छे एवा साधु पुरुषो। 5. थोडा अक्षरोनो होवा छतां तेमां बारे अंगना अर्थनो समावेश छ /
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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