________________ 5 10 विभाग नमस्कार स्वाध्याय। सिद्धिवसहिमुवगया निव्वाणसुहं च ते अणुप्पत्ता / सासयमव्वाबाहं पत्ता अयरामरं ठाणं // 25 // 911 // पावंति जहा पारं सम्मं निजामया समुदस्स / भवजलहिस्स जिजिंदा तहेव जम्हा अओ अरिहा // 26 // 912 // मिच्छत्तकालियावायविरहिए सम्मत्तगजभपवाए / एगसमएण पत्ता सिद्धिवसहिपट्टणं पोया // 27 // 913 // (आ मार्ग केवळ आचरण करायो नथी परंतु आ मार्गे तेओ मोक्षपुरीने पहोंच्या छे ते दर्शावतां कहे छे-) श-सिद्धिवसतिए पहोंचीने तेमणे (जिनेश्वरोए) जे शाश्वत बाधा-पीडा रहित, अजर अने अमर स्थान छे तेवा निर्वाणसुखने प्राप्त कयुं छे / (25) वि०-सिद्धिवसति एटले मोक्षालय, तेने नजीकमां ज कर्मनाशरूप लक्षण वडे प्राप्त कर्यु छे / आम कहेवाथी (सिद्धिलशिामा रहेला ) एकेंद्रिय जीवोनो एमां समावेश थतो नथी / ___केटलाक एवो सिद्धांत बतावे छे के, तेओ ( सिद्धो ) त्यां सुख-दुःखथी रहितपणे रहे छे, सारे केटलाक एवो सिद्धांत स्थापे छे के, धर्मनी ग्लानि थतां सिद्धो अहीं संसारमा आवे छे। . जैनो ए हकीकतनो निषेध करतां कहे छे के, सिद्धोनुं सुख शाश्वत एटले सदाकालीन छे 15 अने अव्याबाध एटले पीडारहित एवा स्थानने प्राप्त थया छे / वळी, ते स्थान वृद्धावस्था अने मरण विनानुं छे / 25, (911) 1. अरिहंतने नमस्कार / . (बीजु द्वार कहे छे-) श०-समुद्रमां वहाणना निर्यामको एटले कर्णधारो सारी रीते पार पहोंचाडे छे ते रीते 20 जिनेश्वरो पण भवरूप समुद्रनी पार पहोंचाडे छे तेथी तेओ अरिहंत-नमस्कारने योग्य छे, एम कहेवाय छे / (26) __श०–समुद्रमा जेम कालिकावात न होय पण गर्जभनो अनुकूळ वायु होय तो कुशळ कर्णधारो सायेनु, छिद्र विनानुं वहाण इच्छित नगरे पहोंचे छे तेम मिथ्यात्वरूप कालिकावातथी रहित अने सम्यक्त्वरूप गर्जभ वायुनी अनुकूळताथी एक ज समयमा वहाणो सिद्धिवसतिरूप नगरने पहोंचे छ / (27) 25 (जेम यात्रिकोनो सार्थ [जीवस्वरूप वहाणना] प्रसिद्ध एवा कर्णधारने लांबा समय सुधी यात्रानी सिद्धि माटे उपकारना कारणे पूजे छे तेम ग्रंथकार सिद्धिनगर तरफ जनाराओनी इष्ट यात्रानी सिद्धि माटे निर्यामकरत्न एवा तीर्थंकरोतुं स्तवन करवानी इच्छाथी कहे छे-) 1. वायु आठ प्रकारना छ। 1 प्राचीन, 2 प्रतीचीन, 3 उदीचीन, 4 दाक्षिणात्य, 5 सत्त्वासुक, 6 तुंगार, बीजाप अने 8 गर्जभ / तेमज उत्तरसत्त्वामुक वगेरे आठ प्रकारो भळवाथी वायुना सोळ प्रकारो एकंदरे थाय छ।